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द्वितीय खण्ड / १७२
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आपके दर्शन कर प्रवचन का लाभ लेते रहे । में भी प्रायः आपके प्रवचन सुनने जाती । चातुर्मास के १५ दिन शेष रह गये थे । कार्तिक बदि १४ को हम २४-२५ बहनों ने पौषध किया ! म० सा० भगवान् पार्श्वनाथ स्तोत्र सुना रहे थे । भगवान् पार्श्वनाथ की महिमा का गान करते हुए आप अपने अनुभव बता रहे थे कि भगवान् की सेवा में धरणेन्द्र और पद्मावती देवी हाजिर रहते हैं । प्रद्भुत अनुभवों के विषय में सुनकर २-३ बहिनों ने शंका व्यक्त की कि यह असंभव है । बहिनों की प्रतिक्रिया सुनकर म० सा० श्री मौन हो गये । दो मिनिट बाद महावीर भवन की तीसरी मंजिल से साध्वी हेमप्रभाजी दौड़ते हुए प्राये और महासती अर्चनाजी से उन्होंने कहा - 'ऊपर नागदेवता बैठे हुए हैं और उन्हें मेरे हाथ का स्पर्श भी हो गया है । उसी क्षण म० सा० और सभी बहिनें तीसरी मंजिल पहुँचीं । रोश की दीवार पर नागदेवता बिल्कुल स्थिर बैठे हुए थे । उनका वर्ण सोने के समान दमक रहा था और प्रांखों में हीरक कण जैसी चमक थी । चारों ओर शोर मच गया था, लेकिन म० सा० बिल्कुल शान्त थे । वह लगभग पौने घण्टे तक भगवान् पार्श्वनाथ स्तोत्र सुनाते रहे और नागदेवता बड़ी मस्ती से सुनते रहे । नीचे रहने वाले चौकीदार को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने श्रीमान् फकीरचन्दजी सा० को इसकी सूचना दी। थोड़ी देर में महावीर भवन का चौक लोगों से भर गया । रतलाम वाले बापूलालजी सा० बोथरा भी आ गये, तुरन्त सपेरों को भी बुलाया गया । परन्तु सपेरे भी नागदेवता का मनमोहक रूप देखकर विस्मित होकर कहने लगे 'यह कोई देव है, हम इसे नहीं पकड़ सकते ।' सभी की आँखें टंगी की टंगी रह गईं। कुछ देर बाद म० सा० ने कहा - " मैंने आपको पार्श्वनाथ स्तोत्र सुना दिया है, मुझसे अब खड़ा नहीं रहा जा रहा, आप अपने स्थान पर दया पालो ।' इतना सुनते ही नागराज नीचे की ओर जाने लगे तो चौक में खड़े लोग भयभीत हो गये । म० सा० ने कहा'नहीं, उधर नहीं, प्रापका रास्ता सीधा है।' नागराज ने सीधा रास्ता लिया और थोडी दूर जाकर अदृश्य हो गया । सर्प का आज्ञाकारी बालक की तरह कहना मानना और अदृश्य हो जाना हमारे लिए कौतूहल का विषय था । शंका व्यक्त करने वाली बहनों ने म० सा० से क्षमायाचना की । दूसरे दिन यह समाचार सर्वत्र फैल गया और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित भी हुआ ।
हमारे परिवार पर म० सा० श्री का वरदहस्त है । आपके आशीर्वाद से हम संकट की घड़ियों से सुरक्षित बच निकले हैं । हमारी भगवान् से यही प्रार्थना है कि आप जीवन पथ को साधना से आलोकित करते रहें ।
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