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________________ पेटदर्द जाता रहा / १४९ तस्वीर नहीं लगी होती तो मेरी जीवनलीला ही समाप्त हो गई होती। महासतीजी ने फरमाया "जिसका आयुष्यबल प्रबल होता है उसे कोई नहीं मार सकता है। व्यक्ति को हमेशा अपने इष्ट का स्मरण करते रहना चाहिये।" मैं हृदय से पूजनीय गुरुणीजी म. सा. के पावन चरणों में श्रद्धावनत हूँ। मुझ पर आपके बहत उपकार हैं। शासनदेव आपको स्वस्थ व प्रसन्न रखें और इसी तरह आप लोगों के हृदय में धर्म के प्रति श्रद्धाभाव जागृत करते हुए उपकार करते रहें। . पर-पीड़ा हरना ही आपके जीवन का लक्ष्य है. पेटदर्द जाता रहा 0 इन्दरमल, उज्जैन __मेरे पेट में असह्य दर्द होता था । इसके लिये मैंने बहुत उपचार कराया, दूसरे अन्य उपाय भी किये परन्तु मेरा पेट दर्द बन्द नहीं हुआ। यह मेरा सौभाग्य ही था कि सन् १९८५ में उज्जैन नमकमण्डी में परमविदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' आदि ठाणा दस का चातुर्मास हुआ। मैं आपके दर्शन करने, प्रवचन सुनने जाने लगा । मैंने अवसर पाकर आपको अपने पेट दर्द की बात भी कही। आपने मौन रहकर तटस्थ भाव से मेरी कहानी सुनी। मेरे आग्रह करने पर आपने मांगलिक भी सुनाई । आपके मंगलपाठ सुनने से मेरे पेट का दर्द सदा-सदा के लिये ठीक हो गया। मैं पहले एक उपवास रखने में भी असमर्थ था किन्तु अब महासतीजी की कृपा से मैंने एकान्तर की तपस्या भी कर ली । अब मैं पूर्णरूप से स्वस्थ पोर प्रसन्न हूँ। अब समय-समय पर मैं आपके दर्शनों का लाभ लेता रहता हूँ। ____ मैंने देखा कि उज्जैन चातुर्मास काल में आपके मांगलिक वचन सुनकर कई लोगों की बीमारियाँ दूर हुई हैं । इस सम्बन्ध में महासतीजी का कहना है कि यह सब नवकार महामंत्र और पूज्य आचार्य भगवंत श्री जयमलजी महाराज सा० को कृपा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only marwainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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