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योगेश्वरी महासती श्री अर्चनाजी / १२३
वचन का अनुसरण करती हो। उससे कथन एवं कृतित्व अन्तराल-व्याप्त नहीं । होता । महासतीजी म. सा० का जीवन इस कसौटी पर सौ टंच खरा उतरता उनकी वाणी सचमुच दिव्य-भावों की स्रोतस्विनी है। उनके वाक्प्रयोग का लक्ष्य वाग्मिता-प्रकाशन नहीं है, वरन् आत्मकल्याण है, विश्व-वात्सल्य है।
महासतीजी की सर्वातिशायी, सर्वोत्कृष्ट देन उन द्वारा निरूपित अनुभूतिप्रसूत ध्यान-पद्धति है, जिससे उनके संपर्क में आने वाला विपुल नर-नारी समुदाय लाभान्वित हुआ है, हो रहा है, सदा होता रहेगा।
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