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________________ एक अनोखा व्यक्तित्व : अर्चनीय श्री अर्चनाजी 0 श्रीमती महिमा वासल्ल, एम. ए. सामान्य व्यक्ति कहाँ और किस समय जन्म लेता है, उसका लालन-पालन व पोषण किस प्रकार होता है, यह किसी को जिज्ञासा नहीं होती। किन्तु जब व्यक्ति व्यष्टि की सीमा को लांघकर समष्टिमय बनता है, उसका कार्य और उसकी विचारधारा 'सर्वजनहिताय, सर्वजनसुखाय' होती है तो उसके जीवन को जानने की भावना जनमानस में जागत होती है। उसके कार्यकलाप, मानसिक व्यापार तथा बौद्धिक चिन्तन की सहस्र रश्मियां जन-जन के मानस में बिखरती हैं और उनमें नव-जीवन फूंकती हुई सुषुप्त भावनाओं को जाग्रत करती हैं। वह सबके लिए आदर्श बन जाता है। जिनका जीवन महान् है, गौरवशाली रहा है और जीवन का प्रत्येक पायाम देदीप्यमान है, ऐसे व्यक्तियों को शब्दों की परिधि में परिवेष्टित करना बहुत कठिन है और जितना परिवेष्टित कर सकेंगे, उससे भी अधिक अछूता रह जाता है । शब्दों की सीमित शक्ति असीम को अपने में समाविष्ट करने में सक्षम भी तो नहीं है। फिर भी परिचय के लिए कुछ न कुछ शाब्दिक प्रयोग अपेक्षित होता है, अतएव अब ऐसे ही एक महनीय व्यक्तित्व के परिचय के लिए यत्किचित शाब्दिक रूपरेखा प्रस्तुत कर रही हूँ, वे हैं अध्यात्मयोगिनी साध्वीसत्तमा श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना'। महासतीजी की प्राकृति मंगलमयी है और प्रकृति प्रशस्त है, वे असाधारण प्रतिभासम्पन्न हैं. अमित प्रात्मबली और साथ ही कुशल अनुशासिका हैं । महासतीजी एक सेवाभावी, सतत जागरूक साध्वी रही हैं और आज भी हैं, पर आप उनसे मिलिए, उनकी सहज सरल और निर्मेल आंखों में झांकिये, मंद मुस्कान से युक्त उनकी मुखमुद्रा को पढिए, उनके स्वाभाविक रहन-सहन व बोलचाल का निरीक्षण कीजिए, कहीं भी अधिकार की गंध नहीं आयेगी। गर्व की एक रेखा भी दिखाई नहीं देगी। उनकी कृति से, उनकी प्राकृति से, प्रकृति से सहजता टपकती है। उनके व्यवहार की प्रत्येक करवट सहिष्णुता, सेवा और सचाई की छवि लिए हुए है। कहना होगा करते हैं कर्तव्य किन्तु जरा अभिमान नहीं है, फूल खिला है, पर खिलने का भाव नहीं है। सब कुछ किया समर्पण जिसने निज जीवन का, उनकी महिमा का होता कुछ अनुमान नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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