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________________ अभिनमन : अभिवन्दन : अभिनन्दन 0 मानवमुनि __ भारतीय संस्कृति में ऋषियों, मुनियों एवं सन्तों का सर्वाधिक महत्त्व स्वीकार किया गया है । उनका जीवन शील, सदाचार, साधना, सेवा एवं सहृदयता का सजीव प्रतीक होता है । इन सद्गुणों के सतत, सहज आचरण द्वारा उनके व्यक्तित्व में एक ऐसी दिव्य प्राभा प्रस्फुटित होती है, जिससे उनके संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति पर उनका अमोघ प्रभाव पड़ता है। ____ इतिहास साक्षी है, समय-समय पर सत्पुरुषों तथा सन्नारियों के रूप में सन्तजीवन का अवतरण होता रहा है, जिनसे तत्कालीन समाज बहुत-बहुत उपकृत हुआ। इतना ही नहीं, उनकी जीवन-गाथाओं की स्मृति आज भी जन-जन में अन्तःस्फति उद्भासित करती है। कौन नहीं जानता, भारतीय संस्कृति के निर्माण, विकास तथा संवर्धन में त्यागतपोनिष्ठा, साधनानुरता, सेवापरायणा, विद्याविभूषिता महिमामयी सन्नारियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनके दिव्य-जीवन की गौरवगाथाएँ इतिहास के पष्ठों पर सत्त्वोन्मुखी प्रेरणा की अमत-स्रोतस्विनियों के रूप में आज भी अक्षुण्णतया विद्यमान हैं। जब तक इस जगत् में सत्य, शील, सच्चारित्र्य, त्याग, भक्ति एवं सेवा का किसी न किसी रूप में अस्तित्व रहेगा, वे कभी धूमिल नहीं होंगी, सदा ऊर्जस्वल बनी रहेंगी। गार्गी, मैत्रेयी, मदालसा, पद्मिनी, ब्राह्मी, सुन्दरी, चन्दनबाला, याकिनी महत्तरा, महाप्रजापति गौतमी, सुजाता एवं विशाखा आदि सन्नारियाँ, जो भारतीय संस्कृति की ब्राह्मण एवं श्रमण-दोनों परम्पराओं से सम्बद्ध हैं, इसी गुणरत्नमयी माला की अमूल्य मणियाँ थीं। निश्चय ही श्रद्धा, समर्पण, बलिदान, तितिक्षा आदि उत्कृष्ट गुणों की दृष्टि से नारी की महिमा अपार है । महाकवि प्रसाद ने "नारी ! तू केवल श्रद्धा है, विश्वास रजत नग पग तल में। पीयूष-स्रोत-सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में ॥" इन शब्दों में नारी के जिस श्रद्धा-संसिक्त रूप का आख्यान किया है, वह निःसंदेह उसकी दिव्यता एवं पावनता का द्योतक है। यदि प्रत्येक युग के इतिहास का आकलन करें तो यह तथ्य स्पष्टतया प्रकट होगा कि नारी की विभिन्न रूपों में उस "युग" के उन्नयन में बहुत बड़ी देन रही है । आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक सभी क्षेत्रों में सन्नारियों द्वारा सम्पादित उत्तमोत्तम कार्यों की एक स्पृहणीय परम्परा हमें प्राप्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.Melibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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