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________________ द्वितीय खण्ड / ११६ ज्यों-ज्यों जैनोलॉजी का कार्य अग्रसर होता गया, मैं उनकी सेवा में वस्तुस्थिति निवेदित करता रहता। उनके आशीर्वाद मुझे मिलते रहे, आज भी मिल रहे हैं। साथ ही साथ वे हमारे जैन विद्या के महनीय अभियान के अनन्य सहयोगी तथा मार्गदर्शक देश के परम प्रख्यात विद्वान् श्रीयुत डॉ० छगनलालजी शास्त्री, जो परम श्रद्धास्पद प्रातः स्मरणीय युवाचार्यप्रवर श्री मधुकर मुनिजी म. सा० तथा पूजनीया महासतीजी म. सा. के साहित्यिक कार्यों में सम्प्रेरक एवं सहभागी रहे हैं, को भी वे समय-समय पर विशेषरूप से प्रेरित करती रहीं कि वे इस कार्य को सर्वाधिक प्राथमिकता दें और अपनी विद्या द्वारा इसके ज्ञानपक्ष, अध्ययनपक्ष, अनुसंधानपक्ष को समुन्नत बनाने में अपना महत्त्वपूर्ण निर्देशन प्रदान करते रहें। यह प्रकट करते मुझे अत्यन्त हर्षोल्लास होता है कि महासतीजी म० की प्रेरणाएं मेरे लिए, जैनोलॉजी के कार्य के लिए निःसन्देह वरदान सिद्ध हो रही हैं। योग महासतीजी म. के जीवन का मुख्य विषय है । न केवल उन्होंने पातंजलयोग, जैनयोग आदि का अध्ययन ही किया है, वरन् उन्होंने जीवन में अध्यात्मयोग की यथार्थ क्रियान्विति भी की है। शास्त्रीय बोध तथा अनुभूतिजनित उपलब्धियों द्वारा उनके जीवन में योग का वह अवदात रूप प्रस्फुटित हुआ है, जिसके साथ अनेकानेक यौगिक विभूतियाँ संपृक्त हैं। महासतीजी म० के पावन, सात्त्विक जीवन से हम सबको अधिकाधिक प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। __ यह बड़े सौभाग्य की बात है कि महासतीजी म० का साध्वी-शिष्या-समूह भी उनके उदात्त जीवन का सम्यक् अनुसरण करते हुए ज्ञानाराधना और संयम-साधना में सतत संलग्न है । महासतीजी म० कुशल आध्यात्मिक प्रशिक्षिका होने के साथसाथ, अनुशासन एवं प्रशासन, जो संयमी जीवन के प्रमुख अंग हैं, के निर्वाह में सर्वथा निपुण एवं प्रवीण हैं । यही कारण है, उनका साध्वीसमुदाय संयमीजीवन के एक आदर्श प्रतीक के रूप में विभासित होता है। __ आचारनिष्ठता, योगानुरक्ति, निःस्वार्थवत्ति तथा परमकारुणिकता महासतीजी म० के जीवन के वे विशिष्ट गुण हैं, जो उनके साधनानुस्यूत जीवन का सार्थक्य प्रकट करते हैं। अनवरत जागरूकता, प्रमादशून्यता महासतीजी म. में आकण्ठ व्याप्त है। उनकी स्मरणशक्ति अद्भुत है, लाखों व्यक्तियों से उनका आध्यात्मिक, धार्मिक संबंध है, जो समय-समय पर उनके संपर्क में आते रहते हैं । जीवन-शुद्धि के सन्दर्भ में विविध विषयों पर वार्तालाप होता है । आश्चर्य है, महासतीजी म० की स्मरणशक्ति इतनी तीव्र है कि वह सब उनकी स्मृति में संस्थित रहता है। हमारा अपना अनुभव है, एक-दो वर्ष बाद जब भी हम उनकी सेवा में उपस्थित होते हैं. वे हमारे साथ पिछले वार्ता-प्रसंग का सन्दर्भ देते हुए वर्तमान वार्तालाप को आगे बढ़ाती हैं । यह पूर्व पुण्यप्रसूत एक महनीय संस्कार-निष्पन्न गुण है, जो विरले ही व्यक्तियों में होता है । ___ अपरिसीम श्रद्धा, आदर, तथा सम्मानपूर्वक अपनी ओर से, अपने सभी पारिवारिक जनों की ओर से महासतीजी म० का कोटि-कोटि अभिनन्दन करता हूँ। -प्रधान सचिव, जैन विद्या अनुसंधान प्रतिष्ठान, मद्रास-७९ Jain Education Unternational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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