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अध्यात्म, संयम, साधना एवं ज्ञान की दिव्य ज्योति
महासती श्री उमरावकुंवरजी म.
'अर्चना
। एस० कृष्णचन्द चोरडिया
मेरे परिवार का व्यवसाय लम्बे समय से अहमदनगर (महाराष्ट्र) में था। मेरे प्रात:स्मरणीय पूज्य पिताश्री सुगनचन्दजो चोरड़िया ने कारणवश अपना व्यापारक्षेत्र परिवर्तित किया । उन्होंने तमिलनाडु में उलन्दरपेट नामक स्थान को अपना व्यावसायिक केन्द्र बनाया। दक्षिण में जो भी राजस्थानी विशेषतः नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही आदि क्षेत्रों से गये हुए व्यापारी प्रायः सपरिवार वहाँ बस गये, किसी विशेष प्रसंग को छोडकर राजस्थान पाने का अवसर उन्हें अपेक्षाकृत कम ही प्राप्त होता है। बार-बार राजस्थान न आने के, निरन्तर दक्षिण में प्रवास करने के कम से कम दो लाभ तो राजस्थानी समाज को अवश्य ही प्राप्त हुए । व्यापार के साथ उनका सतत तारतम्य जुड़ा रहा और तमिलसमाज से उनका स्नेहात्मक संबंध भी बढ़ता गया। साथ ही साथ एक ओर बड़ा लाभ यह भी हा, तमिलभाषा पर उनका आधिपत्य होता गया। अाज तमिल प्रदेश में प्रवास करने वाले लाखों ऐसे राजस्थानी व्यापारी हैं, जो तमिल को मातृभाषा की ज्यों धाराप्रवाह बोल सकते हैं। ___मेरा जन्म सन् १९४७ के सितम्बर मास में उलन्दरपेट में हुआ । सभी संस्कार वहीं सम्पन्न हुए । मैं जब केवल छह महीने का था, तब अपने कुलदेवताओं के यहाँ झडूला उतारने के लिए राजस्थान पाने का प्रसंग बना जो बुजुर्गों के कहने से मैं जानता हूँ। उसके बाद पहले पहल सन् १९७० में जब मैं २३ वर्ष का युवा था, राजस्थान पाया। तब अपने राजस्थान-प्रवास के अन्तर्गत जिन महान् आत्माओं के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उनमें परम विदुषी, श्रमणीरत्न महान् योगसाधिका महासतीजी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' का नाम मैं बड़े आदर एवं श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूँ। प्रथम दर्शन में ही उनके आध्यात्मिक ओजमय व्यक्तित्व की मेरे मन पर अमिट छाप पडी। वैसे मेरे श्रद्धय पिताश्री मुझे तमिलनाड में कभी-कभी प्रसंग आने पर बतलाते रहे थे कि श्री उमरावकुंवरजी म० ने अपनी किशोरावस्था में ही पति-वियोग के अनन्तर श्रमण-दीक्षा स्वीकार कर ली। उनकी प्रव्रज्या हमारे ग्राम नोखाचांदावतां में हुई। इसे मैं अपने परिवार का सौभाग्य मानता हूँ कि ग्रामोपकण्ठवर्ती हमारे ही भू-खण्ड में एक विशाल नीम के वृक्ष के इर्द-गिर्द बने दीक्षा-मण्डप में उनका दीक्षा समारोह संपन्न हुआ। पूज्य पिताजी से महासतीजी म० के विद्यामय, साधनामय एवं संघर्षशील जीवन के विषय में सुनता रहा था । फलतः उनके प्रति मेरे मन में एक सहज श्रद्धापूर्ण आकर्षण था ।
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