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________________ द्वितीय खण्ड / ११२ S भोपाल तक हम ट्रेन गैलरी में दमघोटू भीड़ के बीच बैठे आये। वह रात बड़ी कष्टप्रद रही। मैंने सोचा, इस प्रकार मद्रास पहंच पाना शक्य नहीं होगा। भोपाल में यात्रा स्थगित कर देनी चाहिए। यात्रा स्थगित कर दी। भोपाल से खाचरौद पाये । महासतीजी म. के दर्शन किये। उन्होंने कहा कि हमने तो अभी कल ही सोचा था, आप एक दो दिन में पहुंचने चाहिए । हुआ भी वैसा ही। आप आ गये, बहुत उत्तम हुआ। पूजनीया महासतीजी म० तथा उनकी अन्तेवासिनी साध्वीवृन्द के दर्शन से अत्यधिक प्रसन्नता हुई । अभिनन्दन ग्रन्थ की सामग्री का पर्यवलोकन किया, चयन किया। संपादक-मंडल के अन्तर्गत होने के अपने दायित्व का चाहे अल्प ही सही, निर्वाह किया जा सका, इससे मुझे आत्मपरितोष हुा । अपने खाचरौद-प्रवास काल में श्री राजेन्द्रजी श्रीश्रीमाल तथा उनकी विदुषी बहिन आयुष्मती अनिता एवं उनके पारिवारिक जनों का जो स्नेह एवं सौहार्दपूर्ण आतिथ्य प्राप्त हुआ, वह निःसन्देह उनकी शालीनता एवं संस्कारवत्ता का सूचक है। अति अल्पकालीन किन्तु अत्यन्त प्रेरक इस यात्रा-प्रसंग को परिसंपन्न कर मैं अपने सहयोगी के साथ भोपाल आया। उसी दिन ट्रेन में आरक्षण मिल पायेगा, मन बड़ा संशयाकुल था, चिन्ता थी, किन्तु पूजनीया महासतीजी महाराज की शक्तियाँ तो असीमित हैं। उनके पुण्य-प्रभाव से भोपाल में आरक्षण आदि से सम्बद्ध समस्त व्यवस्थाएं सम्यक् संपन्न हो गईं । मन निश्चिन्त हुआ । मद्रास तक की यात्रा बड़ी सुखद रही। श्रीकृष्णचन्दजी चोरडिया आदि मद्रास के साथी खाचरौद यात्राक्रम से बड़े परितुष्ट एवं हर्षित हुए। मेरी ही तरह अनेक भाई-बहिनों के ऐसे बहुत से संस्मरण हैं, जो परम पूजनीया महासतीजी महाराज के जीवन की परम शक्तिमत्ता, प्रभावकता एवं दिव्य ओजस्कता के परिचायक हैं । महासतीजी महाराज वास्तव में साधना की परमोज्ज्वल दीप-शिखा एवं विभूतिमयी महिमा-मण्डित योगसाधिका हैं। ___ उनकी दीक्षा-स्वर्ण जयन्ती के स्वर्णिम अवसर पर उनका कोटि-कोटि अभिवन्दन, अभिवन्दन एवं अभिनमन करता हुआ मैं यह कामना करता हूँ कि अध्यात्म की यह पुण्य, पावन, सौम्य, शक्तिसंभृत लौ सदा प्रज्वलित रहे, इसकी दिव्य आभा पथभूले राहियों को सच्चा पथ दिखाए, जो मंगल, श्रेयस्, शान्ति एवं सुख का अपरिसीम निधान अपने में समेटे हो, जो पवित्रता में हिमाद्रिवत् समुन्नत हो, गंभीरता में सागरवत् गहन हो। Jain Educald Unternational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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