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महासतीजी श्री उमरावकुवरजी म. सा० / १११ पासिका एक महिमामयी भारतीय नारी की योग-परिष्कृत कण्ठ-ध्वनि से निःसृत निनाद द्वारा पुनः मुखरित हो उठा ।
अस्तु ! परम समादरणीया महासतीजी म० के सानुग्रह मार्गदर्शन एवं संयोजन में प्रातःस्मरणीय, महामहिम आचार्य श्रीहरिभद्र सूरि के चारों योग ग्रन्थयोगदृष्टि समुच्चय, योगबिन्दु दो संस्कृत में तथा योगशतक और योगविंशिका दो प्राकृत में, जैनयोग ग्रन्थ चतुष्टय के रूप में प्रकाशित हुए, जिनका विद्वज्जगत् में तथा साधकवृन्द में सर्वत्र सम्मान एवं समादर हुआ, सभी ने इस प्रकाशन को बड़ा उपयोगी और महत्त्वपूर्ण माना।
परम पूजनीया महासतीजी म. सा. के साथ मेरा आध्यात्मिक संबंध उत्तरोत्तर संवर्धनशील रहा। उनकी नैसर्गिक पवित्रता, निर्मलता और सहजता मेरे लिए सदा प्रेरणास्पद रही, आज भी है। ___ योगसूत्र के साधनपाद एवं विभूतिपाद में योग-विभूतियों का वर्णन है। चमत्कार-प्रदर्शन योग-साधना में समादृत नहीं है । सच्चा योगी वैसा कुछ चाहता भी नहीं, किन्तु ज्यों-ज्यों योग सधता जाता है, उसके मूल फल चैतसिक उज्ज्वलता । एवं पवित्रता के साथ साथ आनुषंगिक रूप में यौगिक विभूतियाँ भी अधिगत होती जाती हैं, जिन्हें जैन परंपरा में लब्धियाँ कहा जाता है ।
महासतीजी निःसन्देह यौगिक विभूति समवेत महान साधिका हैं। उन्हें चमस्कार में कोई रुचि नहीं है । न कभी उन्होंने चमत्कार-प्रदर्शन की इच्छा ही की, कोई उपक्रम ही किया किन्तु कभी कभी स्वयं वैसा कुछ सद्य जाता है, जिससे यह स्पष्ट है, निःसन्देह उनमें अद्भुत शक्तियाँ हैं । अभी को एक सद्यःअनुभूत ताजी घटना मैं यहाँ उल्लिखित करना चाहूंगा। मैं मद्रास के लिए सरदारशहर से दिनांक १४ जनवरी को रवाना हुया । महासतीजी महाराज की दीक्षा-स्वर्णजयन्ती के अवसर पर उनके परमोच्च प्राध्यात्मिक जीवन के अभिनन्दन में एक ग्रन्थ का प्रकाशन हो रहा है, जिसमें सम्पादक-मण्डल में मेरा भी भाग है। महासतीजी का मुझ पर अनुग्रह है, अत: उनकी भावना थी, उस सन्दर्भ में मैं एक बार अभी खाचरौद में उनके दर्शन करू। मेरे स्नेही साथी श्रीकृष्णचन्दजी चोरडिया ने इस विषय में मद्रास से मुझे लिखा, और विशेषरूप से अनुरोध किया कि मैं भोपाल में यात्रा स्थगित कर कुछ समय के लिए पूज्य महासतीजी म० की सेवा में खाचरौद जा सकू, तो बडा उत्तम हो। लम्बी यात्रा, अारक्षण-सुविधा प्रादि देखते मेरा मानस इसके लिए तैयार नहीं हग्रा । मद्रास तक के शायिका-प्रारक्षण की समीचीन व्यवस्था हो
चुकी थी। सरदारशहर में दिल्ली से सत्सम्बन्धी संवाद, बोगी संख्या, शायिका संख्या - आदि सब आ चुके थे। अतः इस व्यवस्था को छोड़ने का मेरा मानस नहीं था, किन्तु दिल्ली आने के बाद एक विचित्र घटना घटित हुई । सूची में कहीं भी मेरा व मेरे सहयोगी का नाम नहीं । हमने काफी दौड़ धूप की, निष्फल रही। ट्रेन में चढ़ने के बाद ट्रेन सुपरिण्टेण्डेट प्रादि से संपर्क साधा, कॉम्प्लेन लिखा, सब कुछ किया, किन्तु न कहीं नाम मिला, न कोई और व्यवस्था ही हो सकी । अन्ततः बाध्य होकर दिल्ली से
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