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________________ द्वितीय खण्ड / १०४ ये एक सफल कवयित्री व गायन कला में भी निपुण हैं । लोकभाषा में लोकधुन पर स्वरचित गीत 'अर्चनांजलि' के नाम से संग्रहीत हैं, जो दीक्षार्थियों को उद्बोधन, वैराग्य से परिपूर्ण श्रद्धा और प्रेम, स्वागत, विदाई गीत व प्रात्म-बोध से ओतप्रोत हैं। __ 'अर्चनांजलि' में संग्रहीत गीतों में जिन गीतों ने मेरे मन को सबसे अधिक प्रभावित किया, उनके अंश यहाँ प्रस्तुत हैं-गीत में आराध्य के प्रति मन के भावविचार व्यक्त करते हुये वन्दना की गई है कि काल जो धड़के धक, धक, म्हाने चरणा में लो रख । __ म्हाने डरपणी लागे सा, भव वन में॥ गीत की पंक्तियां स्वयं ही व्यक्त करती हैं कि चरणों में रखने के लिये क्यों विनती, वन्दना की जा रही है। ____ इस पुस्तक का अन्तिम राजस्थानी गीत है, जिसमें बुहारी के (झाडू) के चार रूपों का चार प्रकार से उल्लेख है-(१) ब्राह्मण, (२) क्षत्री, (३) वैश्य और (४) शूद्र । बुहारी को मुंह से बोलने के लिये प्रेरित किया जा रहा है-इस गीत में इनका पूरा व्यक्तित्व एवं कवित्व उभर कर सामने आता है । मूल्यांकन की दृष्टि से पुस्तक महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है । देखिये गीत इस प्रकार है म्हारे मन मोवणी ए, सुरंगी सोवणी ए। बुहारी म्हांसू मूडे बोल, बुहारी घुघट रा पट खोल बुहारी जीवन रो रस घोल ॥ सभी धर्मों के प्रति आपकी विचारधारा अनेकान्त में एकात्मकता की है । दृष्टि उदार व पावन है। इनका कथन है कि जो लोग धर्म की आलोचना करते हैं वे अपने आप की आलोचना करते हैं, धर्म कोई भी बुरा नहीं है, बल्कि धर्म-मोक्ष मार्ग की साधन है। अभी तक किसी भी जैन-साध्वी ने काश्मीर की ओर विहार नहीं किया था। आप ही एक ऐसी साध्वी हैं, जिन्होंने काश्मीर श्रीनगर एवं आसपास के बीहड़ क्षेत्रों तथा दुर्गम-मार्ग पर चल कर वहाँ के निवासियों को भगवान् महावीर के दिव्य सन्देश से अनुप्राणित किया । 'हिम और प्रातप' काश्मीर-श्रीनगर यात्रा के संस्मरणों की अद्भुत पुस्तक है। कमला जैन 'जीजी' ने, जो काश्मीर यात्रा में इनके साथ थीं, 'अग्निपथ' पुस्तक में लार्कपुर गाँव के मुसलमानों की जिज्ञासा के विषय में लिखा है-मुसलमान होने पर भी उन लोगों को साधु-सन्तों के दर्शनों की उत्कण्ठा तथा उपदेश सुनने की व्यग्रता देखकर अर्चना कुमारी विस्मित हो गईं। यशस्विनी अर्चनाकुमारी ने श्रीनगर से Jain Education Yernational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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