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________________ अगाध धैर्य, साहस एवं आत्मबल की प्रतिमूर्ति, श्रमण-संस्कृति को समुन्नायिका एक महान नारी . साध्वी कंचनकंवर जगद्-गुरु भारतवर्ष सदा से ऋषि-मुनियों की कर्म-भूमि रहा है। इस पावन धरा पर अनेकानेक महापुरुषों का, सन्नारियों का जन्म हुआ, जिन्होंने अपने त्यागमय, तपोमय, शौर्यमय जीवन द्वारा राष्ट्र का, धर्म का, समाज का मुख उज्ज्वल किया। महासतीजी श्रीउमरावकुंवरजी म. सा. "अर्चना" उन महान् आत्माओं की स्वर्णिम शृखला की वह देदीप्यमान कड़ी हैं, जिसकी उज्ज्वल आभा से आध्यात्मिक जगत् विभासित है। राजस्थान के मेरवाड़ा जनपद के अन्तर्गत दादिया नामक ग्राम है, जिसे परम श्रद्ध या महासतीजी को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक छोटे से ग्राम की पुण्य-भूमि में प्रादुर्भूत इस रत्न ने दिगदिगन्त में जो अपनी दिव्य-ज्योति विकीर्ण की, उसका अपना एक गौरवमय इतिहास है। इस संसार में अनेक प्राणी आते हैं, चले जाते हैं। जन्म लेना उन्हीं का सार्थक है, जो अपने ज्ञान तथा साधना द्वारा स्वयं का कल्याण तो करते ही हैं, जन-जन को ज्ञानामत का पान करा धर्म के पावन-पथ पर अग्रसर होने को प्रेरित भी करते हैं। पूजनीया गुरुणी म. सा. का जीवन एक ऐसा ही पवित्र, उत्तम जीवन है, जो धार्मिक जगत् में एक प्रकाश-स्तंभ के रूप में सुशोभित है। __ परम पूज्या, गुरुणी म. सा. ने राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हिमाचलप्रदेश, काश्मीर, मध्यप्रदेश ग्रादि अनेक प्रान्तों में पाद-विहार करते हए भारत के लगभग अर्धाधिक भाग को अपनी धर्म-देशना द्वारा लाभान्वित किया है, जन-जन के हृदय में धर्म का बीज-वपन किया है। महासतीजी म. का प्रात्मबल असीम है । वे धैर्य एवं सत्साहस की प्रतिमूर्ति हैं। संकटों, कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करने में उन्हें आध्यात्मिक आनन्द प्राप्त होता है, जो उनके प्रबल, प्रखर व्यक्तित्व का द्योतक है। यही कारण है, जिन दुर्गम क्षेत्रों में जाने से साधुवन्द भी हिचकिचाते थे, आपश्री ने लोक-कल्याण की भावना लिये अपनी शिष्याओं सहित सोत्साह वैसे स्थानों में विहरण किया । समय-समय पर स्थान-स्थान पर अनेक कठिनाइयाँ पाईं, किन्तु आपने उनका धीरता, वीरता और गंभीरता के साथ सामना किया। जो आत्मबल के धनी होते हैं, उनके समक्ष विघ्न एवं संकट कहाँ टिक पाते हैं ! सबके सब पराभूत हो जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only walaunelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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