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________________ द्वितीय खण्ड / ९६ किसी कवि ने ठीक ही कहा है तूफानों के भय से जिसके साहस में बाधा आई है, ऐसे कमहिम्मत राही ने अपनी मंजिल कब पाई है। जो मंजिल का मतवाला है संकट से कब घबराता है, छोटा सा निर्झर बहने को चट्टानों से टकराता है । सहिष्णुता, समता, सरलता और सौम्यता आपके जीवन में कूट-कूट कर भरी है। किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में पाप विचलित नहीं होती। आपके मन में स्व, पर का भेद नहीं है। समता की उदार भावना अापकी रग-रग में व्याप्त है। आपका हृदय शिशु की ज्यों सरल, सुकोमल और सौम्य है। प्रवंचना, विडम्बना और प्रदर्शन आपको छू तक नहीं गये हैं। हम सभी अन्तेवासिनी साध्वियाँ वास्तव में परम सौभाग्यशालिनी हैं, जिन्हें ऐसी दिव्यगुणालंकृता महिमामंडिता गुरुवर्या प्राप्त हुई। हमारे प्रातःस्मरणीय गुरुदेव, बहुश्रुत पण्डितरत्न युवाचार्यप्रवर श्रीमधुकरमुनि जी म. सा. आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को सदैव बड़ा सम्मान प्रदान करते रहे । वे तो आपको अपनी एक भुजा मानते थे। वास्तव में आपकी गरिमा वर्णनातीत है। मैं अपनी प्रातःस्मरणीया, परम पूजनीया गुरुणी महाराज के प्रति अगाध श्रद्धा, आदर एवं सम्मान की उदात्त भावना लिए सर्वथा, सर्वदा उनके श्रीचरणों में समर्पित हूँ। उनकी अहेतुकी कृपा सदा मुझ पर बनी रहे। वे युग-युग तक धर्मशासन को उद्दोप्त करती रहें, जन-जन को सत्पथ दिखाती रहें, प्राणीमात्र का कल्याण करती रहें। Jain Educdi international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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