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________________ द्वितीय खण्ड | ७८ गुलाम, कमतरीन, (पृ० २) फौजवक्षी, कामदार, मुद्देमुसाहिब, बेदरकारी, लापरवाही, (पृ० ३) बजीर, खुदगर्जीप्रसाद, पोद्दार, छड़ीदार, चोपदार, भिश्ती, (१०४) खजाने, गुलजार, तुर्रा, (१०५) मुखसदाबाद की घाटी, जागीरदार, भोमिए, मरम्मत, तलब, कीमत, (पृ० ६) गैरहाजिर, (पृ० ७) कर्जा, जर्दपने, काफूर, खरदरा, सुर्खाब के पर (पृ० ८) सल्तनत दरकार है, जरूरत, हांसिल, खास मुद्दा, गरज आदि। इतना ही नहीं, 'अर्चना' जी के गद्य में अंग्रेजी भाषा के शब्द (कहीं कहीं पर रोमन-लिपि के साथ) भी यत्र-तत्र दिखाई पड़ते हैं। जैसे 'कायापुर पट्टन' (पृ० १ में) 'Almighty' 'Your most Obedient Servant', (पृ० २ में) प्रिंस ऑफ वेल्स, (पृ० ३ में) प्राइममिनिस्टर, जाइन्ट कोतवाल, कलक्टर, बैरिस्टर, सोलीसिटर, इंसपेक्टर, एडीटर, इंस्ट्रक्टर, (पृ० ४ में) पब्लिक, (पृ० ५ में) मीटर फ्यूज, मशीनरी, (पृ०७ में) बाईकाट, (पृ० ८ में) प्राइवेट सेक्रेटरी। लोकोक्तियों को प्रचुरता-'अर्चना' जी की भाषा में लोकोक्तियों, मुहावरों एवं पारम्परिकताओं की प्रचुरता के कारण उनके गीतों तथा गद्य में अत्यन्त सरसता, स्वाभाविकता, सरलता एवं मधुरता के दर्शन होते हैं । उदाहरण के लिए देखिए(सुधामञ्जरी पृ० १०४)-पाज प्रांगणिए सुरतरु फलियो, शरद पूनम का चांद ज्यूं चमके। (कायापुर पट्टन....) पृ० २-कुए में ही भांग पड़ गई, पृ० ६-छक्के छूट गए, पृ० ७-न घर का न घाट का, पृ० ७-सुर्खाब के पर सटक सीताराम हो गए। ६. गीतों की संगीतात्मकता _ 'अर्चना' जी के सभी गीत संगीतात्मकता से ओतप्रोत हैं । प्रत्येक गीत, किसी न किसी पारम्परिक या आधुनिक गीत की तर्ज पर बनाया गया है। गीत के प्रारंभ में वह तर्ज लिख दी गई है। जैसे 'अर्चनाञ्जलि' के 'गुरुगुणगान' (पृ० ३) की तर्ज है—'थारी मुरली मनेडो मोह'। ७. संपादन और संयोजन स्वतंत्र काव्य-रचना के अतिरिक्त 'अर्चना' जी ने अनेक ग्रन्थों का सुन्दर सम्पादन-संयोजन भी किया है । ऐसे ग्रन्थों में प्रमुख हैं-मुनिश्री हजारीमल स्मृतिग्रन्थ प्रकाशन, ब्यावर (राजस्थान) द्वारा, हिन्दी अनुवाद के साथ १९६२ में प्रकाशित आचार्य हेमचन्द्र रचित 'योगशास्त्र' तथा १९७२ में प्रकाशित प्राचार्य हरिभद्र सूरि का 'जैनयोगग्रन्थ चतुष्टय'। इन ग्रन्थों के प्रारंभ में 'अर्चना' जी ने अपने वक्तव्य भी लिखे हैं जिनमें अपनी योग के प्रति अभिरुचि एवं योग के महत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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