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महासतीश्री अर्चना' जी की काव्य-साधना | ७७ किन्तु वह यहाँ प्राकर कुसंगति में फंस गया और राज्य करने का उद्देश्य भूल गया।
इसी प्रकार सेक्रेटरी विवेकचन्द्र, प्राइममिनिस्टर सम्यग्दर्शन, कोतवाल सद्विचारचन्द्र भी राज्य के उद्देश्य को भूल गए। अतः शत्रुओं ने कायापुर पट्टन पर अधिकार करना प्रारंभ कर दिया। शत्रु मण्डली के नायक का नाम मोहराजा है । मिथ्यादर्शन उसका प्रधान सचिव है और अविवेक उसका कोतवाल है । यहाँ लोभ, काम, राग, द्वेष, मान आदि पुरुष पात्र हैं तथा कुमति, तृष्णा, विकथा, परनिन्दा, रसना आदि स्त्री-पात्र हैं।
मोहराजा ने इस प्रकार कायानगर में पूर्णरूप से अधिकार जमा लिया है। मोहराजा के दूत जरासिन्धु ने हिम्मतगढ़ नामक मजबूत किले को खोखला कर दिया है । शत्रुओं ने, लोचनपुरा, कर्णपुरा, नासिकापुरा, हस्तपुरा आदि उपनगरों को भी बरबाद कर दिया है।
पत्रलेखक की अभिलाषा है कि उसे कायापुर पट्टन के राज्य की आवश्यकता नहीं है । वह तो केवल यह चाहता है कि उसका हिम्मतगढ का किला मजबूत हो जाय । सल्लेखना और अनशन, इन दोनों परम मित्रों पर उसका दृढ विश्वास बना रहे जिनकी सहायता से वह अक्षयपुर नगर पहुँच सके।
यहाँ कायापुर पट्टन इस शरीर का प्रतीक है जिसकी सेवा में सारा संसार दिनरात लगा रहता है । सारा रूपक इस बात का निरूपण करता है कि यह संसारी आत्मा, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का अवलम्बन कर मुक्ति के मार्ग पर निर्बाध चलती हुई निर्वाण प्राप्त करे । ५. काव्य की भाषा
'अर्चना' जी के काव्य की भाषा प्रधान रूप से राजस्थानी है। कवि की मातृभाषा राजस्थानी होने से राजस्थानी भाषा में अत्यन्त स्वाभाविकता और माधुर्य के दर्शन होते हैं।
कुछ गीत एवं गद्य हिन्दी में भी लिखे गए हैं। हिन्दी-गद्य में विशुद्ध संस्कृत शब्दों का मिश्रण है । जैसे 'कायापुर पट्टन का पत्र' में (पृ० १) स्वस्ति, प्रणम्य, परमेष्ट, जगदानन्द, जगज्ज्योति, ज्ञानगम्य, गुणरत्नाकर, क्षमासागर, कुमतिकुठार, समस्तदूषणापहं, (पृ० २) पूर्णरूपेण, चैतन्यचन्द्र, प्रकृत्यनुकूल, (पृ० ८) पतितपावन, अधमोद्धारण आदि ।
हिन्दी में लिखे गद्य एवं पद्य- दोनों में उर्दू भाषा के शब्द भी पाए जाते हैं । जैसे-'महावीर-स्तुति' (अर्चनांजलि पृ० २) में, दुनियां से नफरत है, महावीर से मोहब्बत है, मंजिल की दूरी है, मन की मजबूरी है। 'दीक्षार्थी उद्बोधन' (अर्चनांजलि पृ० ७) में, यौवन की मदमस्त उमंगें, ऐशो अशरत ठोकर मार ।
'कायापुर पट्टन का पत्र' के गद्य में उर्दू-शब्दों का प्रयोग बहुलता के साथ है। जैसे-(पृ० १) गरीबनवाज़, गरीब परवर, परवरदीगार, सदाहुक्मी,
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