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________________ द्वितीय खण्ड / ६८ अंशात्मक भाग्येश एवं केन्द्र की युति चतुर्थ स्थान में राजयोग प्रदान करती है। आपको शश-योग नाम का राजयोग हुआ है। वृहस्पति के साथ में शनि चतुर्थ स्थान में प्रव्रज्या योग के साथ धार्मिक गूढ़ता प्रदान करता है, क्योंकि अष्टमेश शनि अंशात्मक उच्च के हैं, तथा साथ में मुमुक्षुपति भी है । वृहस्पति की युति चरराशि में हुई है। द्वितीय स्थान में अंशात्मक सूर्य-बुध की युति और द्वितीय स्थान के मध्याकाश में उच्चस्थ चन्द्र वाणी पर अपना पूर्ण वर्चस्व देता है । तृतीय स्थान में शुभ ग्रही राहु अपनी राशि को यात्रा में सफलता प्रदान करता है, और पराक्रम दृढ़ एवं धैर्यशील बनाता है । अंशात्मक मंगल छठे स्थान में अपने कारक स्थान में बैठकर लग्न को निहारते हैं, साथ में कारक भी हैं। कर्मेश एवं पंचमेश भी हैं। त्रिकोणाधिपति एवं केन्द्रश भी हैं। अपने कारक स्थान षष्ठ स्थान में विराजमान है अतः शत्रयों का मानमर्दन करने वाला आपका मानस दृढता के साथ बाद में उसे जीत लेता है। कर्मस्थान में फोन है अतः आपके कार्य की दृढ़ता प्रणाली अनन्य प्रकार की उत्तम है। चन्द्र लग्नेश लाभ स्थान में उच्च का होकर यश प्रदान करता है, लेकिन 0° का होने से शरीर में कुछ व्याधि रहती है । __ नवांश में गुरु उच्च के श्रेष्ठ फलदायी हुए हैं, वह भी लग्न की राशि है, जो मरणोत्तर मोक्ष प्रदान करता है। अष्टमेश शनि नवमांश में निचस्थ होकर आयुष्य के लिए श्रेष्ठ बन गए हैं तथा कई प्रकार की योगिक गूढ़ताएँ प्रदान करता है। शनि ही एक ऐसा ग्रह है जो अष्टमेश हो तो उस व्यक्ति पर मुसीबतें लाद कर उसे तपाकर सोने की तरह पवित्र कर देते हैं। चन्द्र भी शनि के क्षेत्र के हैं, अतः प्रव्रज्या योग में विशेष साथ देने वाले यही लग्नाधिपति रहे हैं। बुध द्वितीय स्थान में मार्केश होने से परिवार की तरफ से बहुत परेशानी उठानी पड़ी। नवांश में सूर्य वृहस्पति के क्षेत्र का धर्म धैर्य और धर्म के उच्च प्रकार का तत्त्व-चिन्तन प्रदान करता है, क्योंकि वृहस्पति और सूर्य नैसर्गिक देवग्रह हैं और दोनों नवांश में श्रेष्ठ क्षेत्र पाये हुए हैं। स्वनाम धन्य पूज्य महासतीजी श्री उमरावकुवरजी म. सा. 'अर्चना' का शुभ ग्रहयोग है। दीक्षा-स्वर्णजयन्ती के मंगल अवसर पर आपके चरण-कमलों में आस्था के साथ कोटिशः वन्दन करता हुआ सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतराग प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि आपका वरद हस्त चिरकाल तक हमारे मस्तक पर रहे। इसी मंगल कामना के साथ विराम लेता हूँ। 00 Jain Educate 4nternational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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