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________________ ऐसा था बचपन [ डॉ० नरेन्द्रसिंह । यदि कोई नन्ही समझिए की वह । यदि कोई नन्ही लगे, किसी की बचपन की घटनाओं से समग्र जीवन व्यंजित होता है बालिका खिलौनों, फलों तथा रंग-बिरंगे वस्त्रों से मोह रखे तो बड़ी होकर मन के आँचल को सांसारिक रंग में रंगना चाहती है बालिका बचपन से ही किसी दुःखी या बीमार को देखकर सोचने मृत्यु देखकर उसके चिन्तन की वीणा के तार झंकृत हो उठें तो इससे यह व्यंजित होता है कि वह परम्परा की लीक पर चलने के लिए नहीं जन्मी है । उसके जीवन का लक्ष्य उन लोगों के लिए एक इमारत बनाना है, जिनकी लाशों को कफन तक भी नहीं मिल पाता है । ऐसी दिव्य बालिका उन लोगों के करुण - क्रन्दन का कारण जानना चाहती है, जिनकी मन की जलती धरती पर आजीवन अश्रु बरसते हैं लेकिन तपन फिर भी दूर नहीं होती । श्रद्धय अध्यात्मज्योति महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' म० सा० आज साधना के जिस उत्तुंग शिखर पर बिहार कर रही हैं, इसके बीज उनके बचपन में ही छिपे हुए थे । आपका बचपन घरौंदों व खिलोनों की दुनिया तक सीमित नहीं था । श्रापके बचपन में इस कामना के बीज थे- 'मुझे अन्धकार प्रकाश की ओर ले जाओ, मुझे अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाओ, मुझे मृत से अमरत्व की ओर ले जाओ ।' प्राज बचपन की कामना का यह बीज अंकुरित होकर फलदार वृक्ष में परिणित हो चुका है, जिसकी छाया - साया में अनेक संतप्त जीवात्मा सुख और शांति प्राप्त कर रही हैं। उनके बचपन की कतिपय घटना उल्लेखनीय हैं, जिन पर भविष्य की तपश्चर्या का प्रासाद निर्मित हुआ है । माँ के आहार और विचारों का गर्भस्थ शिशु पर बहुत प्रभाव पड़ता है । आपकी माता श्रीमती अनुपादेवी अत्यधिक धार्मिक एवं सरल स्वभाव की महिला थीं । उन्होंने गर्भावस्था के नौ महिने में अत्यधिक सात्त्विक आहार ग्रहण किया था, दूध, आम का रस, ताम्बूल और सिके हुए गेहूँ के अतिरिक्त इस अवधि में उन्होंने कुछ नहीं ग्रहण किया । समय-समय पर उपवास भी किये, अष्टमी और चतुर्दशी का उपवास तो करना कभी नहीं भूलतीं । प्रायः धर्मचर्चा में भाग लेतीं । गर्भस्थ शिशु जैसे इन संस्कारों को ग्रहण कर रहा था । वि० सं० १९७९ भाद्रपद माह की सप्तमी को अज्ञान के तिमिर को दूर करने वाले अर्चनादीप को जन्म देकर आपकी माताश्री ने संसार को उपकृत किया । यह वह समय था जब कन्या के जन्म लेते ही सबके चेहरे से खुशी गायब हो जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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