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________________ मेरी आस्था की प्रेरणास्रोत / ६३ प्रस्तुत करती हैं तो कहीं राजस्थान के लोक गीतों को उद्धृत करती हैं । हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी, गुजराती, पंजाबी आदि विद्वानों के मत देकर अपने कथन को पुष्ट करने में भी प्रापको दक्षता प्राप्त है। अंग्रेजी की प्रसिद्ध कहावत है Stile is a man herself, इस कसौटी पर यदि आपकी प्रवचन शैली की समीक्षा की जाय तो स्पष्ट होता है कि अापका व्यक्तित्व अत्यन्त हँसमुख, उदार और विद्वत्तापूर्ण है । कथन के प्रमाण में निम्नलिखित पंक्तियां प्रस्तुत हैं--- "मनुष्य के लिए मित्र जितने आवश्यक हैं इन्हें ढूढना अति कठिन है। बहुधा ऐसा होता है कि हम उसकी तड़क-भड़क पर मुग्ध हो जाते हैं। सुन्दर मुख, कलापूर्ण बातचीत करने का ढंग तथा विनोदप्रिय प्रकृति प्रादि हमें किसी साथी को मित्र समझने में पर्याप्त कारण बन जाता है। परन्तु आपत्ति की कसौटी पर कसे बिना मित्र की भी पहचान नहीं होती। कवि रहीम ने कहा है कहे रहीम सम्पति सगे बनत बहुत बहु रीत ।। विपति कसौटी पे कसे, ते ही सांचे मीत ।। ऐसा मित्र सबसे निकृष्ट होता है जो अच्छे दिनों में पास रहता है और मुसीबतों के दिनों में मुंह फेर लेता है- The worst friend is he who frequents you in prosperity and deserts you in misfortunes वस्तुतः अपनी प्रवचन शक्ति का चमत्कार तो वही बता सकते हैं जिनका इसके द्वारा कायाकल्प हुआ है। ___ आपके प्रवचन व्यक्तिविशेष के लिए न होकर सर्वजनहिताय होते हैं। प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक आयु के श्रोता को उनसे कुछ न कुछ अवश्य मिलता है । बालक उपदेशपरक कहानियाँ, नवयुवक अनुकरणीय आदर्श, विद्वान आगमचर्चा एवं बहनों को चरित्र कथा जो वे चाव से श्रवण करती हैं। गत पचास वर्षों में आपके प्रवचनों में उत्तरोत्तर निखार पाया है। ' आपके मन में करुणा की पावन भागोरथी प्रवाहित होती है । सत्पुरुष वही होता है जो चारों ओर से दुःखों से घिरा रहकर भी घबराता नहीं है, धैर्य की अग्नि में विपत्तियों के झाड़-झंझाड़ जलाकर राख कर देता है । लेकिन दूसरे का दुःख उससे एक पल भी नहीं देखा जा सकता है। महासती 'अर्चना' जी भी अपने जीवन में भले ही अत्यन्त दुःख सहकर हिमालय के समान अडिग रही हों लेकिन दूसरों को दुःखी देखकर उनका हृदय द्रवित हो जाता है। आपमें करुणा ठीक उसी तरह व्याप्त है जैसे पर्वतों के अंक में झरने मचलते हैं । मुझे इस संदर्भ में आपके बचपन की एक घटना याद आती है । आप तब पाँच वर्ष की थीं। द्वार पर कोई भी गरीब पाता, पाप करुणा से द्रवित हो जाती और घर से घी, गेहूँ, कपास आदि दे देतीं। एक बार एक भिखारी आपके द्वार पर आया जो कई दिनों से भूखा था। जिसका पेट पीठ से चिपका हुआ था। आपने उसे घर से लड्डू खाने के लिये दिये और दया आँखों से उसे लड्डू खाते हुए देखने लगीं । तभी परिवार के किसी सदस्य ने आकर आपको डाँटा और भविष्य में भिखारी को कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only Jilmw.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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