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________________ द्वितीय खण्ड | ६४ न देने को कहा । आपने उसी दिन से लड्डू को त्याग दिया और आज तक नहीं खाया। 'न धर्मों धार्मिकैविना' अर्थात् धर्मात्माओं के बिना धर्म नहीं रहता। आपने भी जैन धर्म के मर्म को जन-जन तक पहुँचाया है । जैन-दर्शन का तात्त्विक विवेचन करते हुए आप श्रावकों को सहज ढंग से समझाने की क्षमता रखती हैं। आपने अनेक स्थलों पर धर्म के नाम पर जब भी लोगों में परस्पर मनमुटाव, खींचातानी और संघर्ष देखा तो शीघ्र ही आपने उसे त्याग, तप, वचन और व्यक्तित्व के प्रभाव से शांत कर दिया। किशनगढ़ में स्थानक अनेक वर्षों से बन्द थे और द्वेष का कारण बने हुए थे आपने अपने प्रभाव से लोगों के मतभेद को दूर किया और बन्द ताले खुलवाए। आप समाज-सुधारक की भूमिका निभाने में भी सदैव अग्रणी रही हैं। शिक्षाकेन्द्रों, औषधालयों, अनाथालयों एवं वृद्धाश्रमों को योगदान देने के लिए आप सतत यत्नशील रही हैं । आपको मान्यता है किसी भूखे, बीमार या अनाथ की मदद करना सबसे बड़ा धर्म है। . समाज में वही परिवर्तन ला सकता है जो तूफानों का सामना करता है "तूफानों में जो पलते जा रहे हैं, वही दुनियाँ बदलते जा रहे हैं।" आपने बाल-विवाह, अनमेल-विवाह, दहेज-प्रथा, मृत्युभोज आदि कुप्रथानों को समाप्त करने के लिए विशेष प्रयत्न किया है। धैर्य और गाम्भीर्य आपके व्यक्तित्व की अप्रतिम विशेषता है । आपको देखकर मुझे समुद्र की याद आती है जिसमें अथाह गम्भीरता होती है लेकिन वह कभी इसका प्रदर्शन नहीं करता। मौन रहता हुअा तैराकों को मणियाँ और रत्न देता है। आपमें भी ज्ञान की असीम गम्भीरता है। आपके समक्ष जो भी श्रद्धा और आस्था से शीश झुकाता है, ज्ञानचर्चा का अमृतपान करता है, उसका जीवन ही नई दिशा प्राप्त कर लेता है। आपके मत का कोई भले ही खंडन कर दे अथवा कट भाषा का प्रयोग करे परन्तु आपके चेहरे पर मुस्कान यथावत् रहती है। प्राप उसे तुरन्त उत्तर न देकर चिन्तन के लिये प्रेरणा देती हैं। परिणामतः जब उस व्यक्ति को सचाई अनुभव होती है तो वह आपका भक्त बन जाता है। ___ आपने जैन धर्म की उदारता को विशेष रूप से अपनाया है । यही कारण है कि जैनेतर भी आपकी शरण में आकर सुख और शान्ति प्राप्त करते हैं। आपके इन्दौर चातुर्मास में जैनियों के अतिरिक्त पंजाबियों ने भी बडी संख्या में आपके दर्शनों का लाभ प्राप्त किया। काश्मीर विहार के दौरान भी बड़ी संख्या में मुस्लिम, पंजाबी और सिन्धी अापके भक्त बने । आपके उपदेश उस ठंडी बयार के समान हैं जो बिना किसी भेद-भाव के सबको शीतलता प्रदान करती है। आपका समझाने का ढंग भी इतना सरल है कि आपकी शरण में आने वालों की कुण्ठाएँ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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