SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संघर्ष के तूफान में : एक जलती दीप-शिखा / ५९ गम्भीर और गौरवशाली भी थे। तत्पश्चात् पूज्य गुरुदेव श्री हजारीमलजी म. सा. का यह आशीर्वाद रहा कि "मुझे वन्दन करके अध्ययन करने बैठ जाया करो, मार्ग स्वतः ही मिल जाएगा।" आज भी वैसा ही होता है। स्वामीजी श्री ब्रजलाल जी म. सा. से मुझे अपने सिद्धान्त पर दृढ रहने की शिक्षा मिली। पूज्य युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. सा. "मधुकर' से प्रत्येक व्यक्ति में से बराई को छोड़कर अच्छाई को ग्रहण करने की प्रेरणा ली। - श्रमण संघ के प्रथम पट्टधर आचार्य श्री आत्माराम जी म. सा. से अपनी गल्तियों को सहज ही स्वीकार कर लेने की और पूज्य फूलचन्दजी म. सा. तथा पंजाब केसरी पूज्य प्रेमचन्दजी म. सा. से निःसंकोच प्रवचन देने की प्रेरणा मिली। मेरठ वाले श्री फूलचन्द जी म. सा. से ध्यान योग की कुछ जानकारी मिली। १७. किन-किन बातों से मानव लोकप्रिय बनता है ? में लोकप्रिय बनने की प्रत्येक व्यक्ति की कामना रहती है। उसके लिये जीवन में चार सद्गुणों की तो परमावश्यकता है। (१) हृदय में दयालुता (२) वाणी में मधुरता (३) हाथों में उदारता (४) कर्म में परहित । इनके अलावा और भी अनेक अच्छाइयाँ हैं, जिन्हें मनुष्य को अपनाना चाहिए। १८. समाज में बालविवाह होते हैं, आये दिन देखते हैं। क्या ये उचित हैं ? ___ बालविवाह एक सामाजिक बुराई है। इसे अवश्य ही दूर करना चाहिए। बालविवाह का अर्थ शारीरिक और मानसिक यंत्रणा है। १६. सन्तों के नाम पर अनेक सम्प्रदायों का निर्माण हुआ है ? यहाँ तक तो ठीक है लेकिन सम्प्रदायवाद कहाँ तक ठीक है ? जहाँ तक सम्प्रदाय का सवाल है यह साधकों के लिये व्यवस्था है। अर्थात् साधना की आधारशिला है किन्तु बाद जहाँ पाता है वहाँ व्यक्ति में हठग्राहिता या जाती है। इस वाद के कारण ही परस्पर संघर्ष होते हैं और विघटनकारी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। गहस्थों में मनोमालिन्य पैदा हो जाता है। सम्प्रदायवाद को लेकर ही समाज ने अनेक हानियाँ एवं बदनामियाँ उठाई हैं। २०. आपको नजरों में सर्वश्रेष्ठ लोककल्याण की भावना क्या है ? अपने नहीं दूसरों के सुख के लिए प्रयत्न करें । हमारी आँख से निकलने वाला वह अश्रु मोती है जो दूसरे के दु:ख के कारण जन्म लेता है । २१. प्राचीन कवियों में से आपको अधिक प्रिय कौन से कवियों की रचनाएँ हैं ? मुझे निर्गणी कवियों की रचनायें अधिक प्रिय हैं, जैसे प्रानन्दघन, कबीर, धर्मदास, भूधर आदि । वैसे पूज्य श्री जयमल्लजी म. सा., पू. श्री रायचन्दजी म. सा., पूज्य श्री आसकरणजी म. सा., पूज्य रतनचन्दजी म. सा. की रचनायें भी मुझे बहुत प्रिय लगती हैं। बड़ी रुचि से मैं उनका पाठ करती हूँ क्योंकि इनकी सभी रचनायें आगमों पर आधारित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy