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________________ द्वितीय खण्ड | ६० २२. विज्ञान ने मनुष्य को मौत के सामने खड़ा कर दिया। क्या विज्ञान की प्रगति ठीक है ? वैज्ञानिक आविष्कारों का लोकहित में प्रयोग किया जाये तभी इसकी उपयोगिता है अन्यथा नहीं। २३. धर्मनीति और राजनीति में क्या अंतर है ? राजनीति दण्ड पर आधारित है और धर्मनीति को आधारशिला प्रायश्चित्त है । द्वितीय ही अधिक उपयुक्त है । २४, परदोष देखना बुरा है ऐसा कहते हैं। फिर भी परदोष देखते हैं ऐसा क्यों है ? __ मिथ्यात्व के उदय से । जैसे- किसी को साँप काट खाय । विषग्रसित व्यक्ति को नीम के पत्ते चबाने के लिये दिये जाएँ। वह जानता है कि नीम कड़वा है, फिर भी खाता है । उस वक्त उसे मीठा लगता है । २५. अपने ही धर्म के प्रति लोगों के दिलों में अश्रद्धा क्यों है ? धर्म का सच्चा स्वरूप बताने वाले गुरुओं के अभाव से । अध्यात्मयोगिनी सती श्री 'अर्चनाजी' ने मेरे प्रश्नों के उत्तर निर्भीकता से सारगभित शब्दों में दिये । प्रत्येक उत्तर आपके मानस-मंथन से जन्मा । आपके कथन में स्पष्टता है । कहीं आपने अपने भावों को शब्दजाल में उलझाने का प्रयास नहीं किया। आपके उत्तर सुनकर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आप उच्चकोटि की अध्यात्मयोगिनी एवं प्रवचनकी ही नहीं अपितु महान दार्शनिक भी हैं। आपने जिस पथ पर भी चरण रखे हैं वह पथ अध्यात्म-ग्रन्थ का स्वणिम पृष्ठ बन गया है। 00 NA Jain Educatill international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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