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________________ संघर्ष के तूफान में : एक जलती दीप-शिखा | ५५ नहीं होती हैं, उसी प्रकार सभी युवावर्ग धर्म पर विश्वास न करते हों ऐसा मैं नहीं मानती । मैंने जहाँ-जहाँ भी चातुर्मास किये वहाँ-वहाँ कुछ ऐसे उत्साही नवयुवक देखने को आये जिनमें वृद्धों से भी अधिक धर्म के प्रति आस्था है । अत: में निश्चितरूप से कह सकती हूँ कि कुछ युवकों में धर्म के प्रति अधिक आस्था है और कुछ में कम और कुछ दिशाहीन होने से धर्म से विमुख हो गये हैं किन्तु धर्मावलम्बी प्रयत्न करें तो उन्हें भी धर्म का मार्ग दिखा सकते हैं। ५. देश एवं समाज में जो कुप्रथायें घर कर गई हैं, क्या वे समूल नष्ट हो सकेंगी? जैसे कि मौसर (मत्यभोज) सतीप्रथा आदि । आज जिस वैज्ञानिक युग में, संक्रमण काल में हमारा देश गुजर रहा है इसलिए निश्चित ही जो रूढियाँ हमारे देश की जड़ों में बद्धमूल हो गई हैं उन्हें दर करने में तो समय लगेगा किन्त विज्ञान के नवोन्मेष में ऐसो रूढियाँ जो पूर्णतय जडों तक नहीं पहुँच पाई हैं वे नष्ट हो रही हैं मेरी ऐसी मान्यता है कि समाज का बुद्धिजीवी वर्ग धर्म के अधिष्ठाता से मिलकर प्रयत्न करे तो इस दिशा में उन्हें निश्चितरूप से सफलता मिलेगी। ६. समाज-सुधार में किन-किन बातों को आवश्यकता है ? इस पर जरा प्रकाश डालिये? सबसे बडी आवश्यकता प्रामाणिकता अर्थात् ईमानदारी को है । जब तक व्यक्ति सच्चाई का सहारा नहीं लेगा तब तक वह समाज का कायाकल्प नहीं कर सकेगा। अतः सत्साहित्य का निर्माण किया जाए एवं भ्रान्तियों को सत्ज्ञान और सत् विवेक के द्वारा दूर किया जाए । जहाँ तक हो सके जीवन में सादगी और सेवाधर्म को अपनाया जाए और अतीत एवं वर्तमान के विचारकों के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन करके सही दृष्टिकोण से सोचकर उपयुक्त कार्य किया जाए। ७. मानव मन में भेदभाव की जो खाइयाँ खुद रही हैं क्या वे भर सकेंगी? समस्त मानवसमाज के लिए तो नहीं कहा जा सकता है फिर भी जो प्रात्मा ईश्वर, कर्म और लोक में विश्वास रखने वाले हैं वे चाहें तो सन्त महात्माओं के उपदेश एवं प्रादेशों से भेदभाव को खाइयाँ पाट सकते हैं । यदि सच्चे अर्थों में आनन्द और सुख से जीने की अभिलाषा हो ऐसा तभी सम्भव है। ८. मैं मानता हूँ आपने अब तक का सारा जीवन संघर्षों में व्यतीत किया। क्या संघर्ष ही जीवन है ? मेरे जीवन का तो यही अनुभव रहा है । जन्म लेते ही माता का वियोग । थोडी समझ पाते ही बड़ी माताजी स यह सुनने को मिलता था कि यदि तुम घर का काम नहीं सीखोगी तो ससुराल वाले कहेंगे "माँ तो थी नहीं काम कौन सिखाता" अतः छोटी उम्र में ही बहुत कुछ सीख लिया था। ससुराल में दो वर्ष बाद ही Jain Education International For Private & Personal Use Only WIMjainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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