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________________ द्वितीय खण्ड | ५४ १. वर्तमान में चारों ओर हिंसा का तांडव हो रहा है। मानव के मन में भय __ परिव्याप्त है। वह निर्भय केसे हो सकता है ? इस विषय में आपको क्या राय है ? वर्तमान समय में हिंसा का जो यह ताण्डव नृत्य दिखाई देता है, उसके पीछे सबसे प्रमुख तत्व में व्यक्तिगत स्वार्थपरता है। नैतिकता विहीन विश्व राजनीति भी हिंसा का प्रमुख कारण है अंध विकास की इस घुड़-दौड में प्रत्येक देश दूसरे देश को पीछे छोड़ना चाहता है। आज व्यक्तिगत ईा इस कदर बढ़ गई है: कि कोई भी किसी को उन्नतशील देखना नहीं चाहता है। ईर्ष्या-द्वेष छलछद्म की इन्हीं तच्छ मनोवत्तियों का परिणाम हिंसा की परिणति होता है। २. महाप्रभु महावीर ने मानव को जीवन विकास और आत्म-उत्थान का प्रशस्तपथ बताया। अनेकों ने उस पथ पर चल कर अपना विकास एवं उत्थान भी किया पर आज का मानव उनके सिद्धान्तों को उपेक्षा क्यों करता हैं ? भगवान महावीर ने जीने का जो मूल मंत्र दिया है उसके तहत सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, एवं अपरिगृह हैं । इन मूल मन्त्रों में से यदि एक को भी हम अपने जीवन में अपनालें तो जीवन चिर सुन्दर बन सकता है । निश्चित ही इन्हें अपना कर सन्मार्ग पर पांव रख सकता है । किन्तु आज के आथिक युग में मनुष्य धन कमाने एवं आरामतलब जीवन बिताने में ही व्यस्त है । अतः वह ईश्वर से विमुख होता चला जा रहा है। विज्ञान ने भी धार्मिक मूल्यों को प्रभावित किया है अस्त्रों के इस युग में हो मनुष्य महावीर के सिद्धान्तों से विमुख होता चला जा रहा है। आज का मानव अधिकतर भौतिकता के आकर्षणों में इतना भटक गया है कि उसे अध्यात्म की सुधबुध नहीं रही है । भौतिकता की चकाचौंध से शीघ्र ही अंधता अनुभव कर वह अध्यात्म की ओर लौटेगा। ३. वर्तमान में समाज को विषम परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य अंधकारमय दृष्टिगोचर हो रहा है। इस सम्बन्ध में आप क्या कहना चाहेंगी? आज हमारे समाज की जो यह दयनीय स्थिति दिखाई दे रही है निश्चित ही उसका भविष्य अन्धकारमय हैं । कार्य और कारण का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। इस दृष्टि से भी यदि हम देखें तो मैं यह मानती हूँ कि इसके पीछे मानव मन की कुण्ठाएं स्वार्थ परता, दम्भ, लोभ, सभी कार्य कर रहे हैं । अाज पुत्र पिता का कहना नहीं मानता है। राजनीति भी व्यक्तिवादी हो गई है। भ्रष्टाचार चरम स्थिति पर पहुँच गया है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध मात्र दिखावा रह गया है। निश्चित्त ही इन विभीषिकाओं से समाज का भविष्य उस अंधकार के गर्त में पहुंच गया है जहाँ से लौट पाना सहज नहीं है। ४. लोग कहते हैं आज के युवावर्ग में धर्म के प्रति निष्ठा व लगाव नहीं है। क्या यह सत्य है ? मेरो अपनी मान्यता है कि जिस तरह हाथों की पाँचों अंगुलियाँ समान नी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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