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________________ संघर्ष के तूफान में : एक जलती दीप-शिखा / ५३ स्वास्थ्य संबंधी पूछा सतीजी म० ने मधुर मुस्कान के साथ कहा स्वास्थ्य पहले जैसा तो नहीं, ठीक ही चल रहा है । ___ बात-चीत का दौर शुरू होता है । मैंने कहा आपके जीवन की जो विशेषताएँ हैं उन पर ग्रन्थ निकल रहा है । जो एक ऐतिहासिक घटना होगी ऐसा हमारा विश्वास है । यह ग्रन्थ सभी ग्रन्थों में एक होगा। इस ग्रन्थ में हमारे प्रिय पाठक नई जानकारी प्राप्त करेंगे । इसी सन्दर्भ में हम आपसे कुछ जानकारी चाहते हैं । सतीजी म. के मुख पर चिन्तन की रेखा उभरने लगी। चश्मा उतार कर ग्लास को पौंछने लगी। चश्मा लगाकर गला साफ किया और बोली ये सब क्या है ? मैं क्या बताऊँ ? अाप क्या पूछना चाहते हैं ? चेहरा ऊपर किया, इधर उधर नजर घुमा कर देखा मुझे ऐसा लगा शायद किसी को बुलाना चाहती हों। __ जो मेरे पास प्रश्न थे वो उनके सामने रखे। धीमे व मन्द आवाज में बोली क्या आप भी मेरी परीक्षा लेना चाहते हैं ? मैंने बात को बीच में रोककर कहा ये बताइये जो प्रश्न आपके सामने हैं वे उचित है या अनुचित ? फिर वही मुस्कान चश्मे को रुमाल से पौंछ कर कहा आपके सभी प्रश्न चिन्तन प्रधान हैं। कुछ समय के लिए सन्नाटा। मौन तोड़ा मैंने कहा इन छोटे-छोटे प्रश्नों को चिन्तन प्रधान बताया । आपकी नजर पैनी है । बुराई में भी अच्छाई ढूंढ़ लेती हैं । ___मैंने अापके प्रवचन अनेक बार सुने । उन प्रवचनों में आपने बताया"अच्छाइयों को ग्रहण करने से व्यक्ति महान् बन जाता है । आप ने सुना होगा। (सतीजी म० का संकेत मेरी तरफ था) बून्द-बून्द से घट भर जाता है । इसलिए हमें हमेशा गुणों की तरफ निगाहें रखनी चाहिए। प्रिय पाठको! आपने सतीजी म० के प्रवचन भी सुने हैं। समय-समय पर दर्शन भी किये हैं । सतीजी म० का ज्ञान विपुल है । सभी को साथ में लेकर चलने की बेजोड़ कला है । यह कला अन्य स्थानों पर देखने को कम मिलेगी। सामाज में, देश में, राष्ट्र में कुछ परिवर्तन हो, सुधार हो ऐसी सतीजी म० के दिल में तड़प है, लगन है, और निष्ठा है। सतीजी म० के बहुरंगी व्यक्तित्व को शब्दों की सीमा में बांधना मुश्किल है। सम्पूर्ण स्थानकवासी जैन समाज में श्री अर्चना जी म० विख्यात साध्वी हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र जिनकी मंगलगरिमा व्याप्त है । प्रत्येक जिज्ञासु को आपके ज्ञान से लाभ उठाना ही चाहिए। मैंने भी ऐसा ही किया । साहस को बटोर कर . मैंने सतीजी म. के सन्मूख पहला प्रश्न कर डाला।। ___ जो महासतीजी म० ने जवाब दिये उन सबका अंश मैं यहाँ दे रहा हूँ। यह चर्चा का दौर मुझे तो बेहद पसन्द आया। मेरी यही उम्मीद है कि हमारे पाठकों को भी रुचिकर लगेगा । सभी प्रश्नों के समाधान चिन्तन प्रधान व सारभित हैं। मेरा पहला प्रश्न यह था Jain Education International For Private & Personal Use Only WWW ainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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