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संघर्षों के तूफान के बीच आत्मसाधना की ओट में मुस्कराती
___ दीप-शिखा की कहानी संघर्ष के तूफान में : एक जलती
दीप-शिखा 0 मुनि विनयकुमार 'भीम'
घटना बहुत पुरानी है । मेरे गुरुदेव जैनभूषण उपप्रवर्तक शासनसेवी श्री ब्रजलालजी म. बहश्रत पूज्य गुरुदेव श्री मिश्रीमलजी म. 'मधूकर' का चातुर्मास पाली मारवाड़ में था। उस समय मैं वैरागी था । परम विदुषी महासती श्री उमरावकुंवरजी म, 'अर्चना' श्री उम्मेदकुंवरजी म. श्री कंचन कंवरजी म. श्री सेवावन्तीजी म. का चातुर्मास नाथद्वारा में था। गुरुदेव की आज्ञा थी कि नाथद्वारा जाना और सतीजी म. को दीक्षा पर पधारने की विनती करना।
१२ घंटे की लम्बी यात्रा के बाद मैं व संघ के प्रमुख सदस्य नाथद्वारा पहुँचे । प्रवचन समाप्त हो चुका था। यह मेरी सतीजी म. से पहली मुलाकात थी। पहली बार सतीजी म. को देखा । दीक्षा पर पधारने का आमंत्रण दिया । मेरी तथा संघ की विनती एवं गुरुदेव श्री का आदेश स्वीकार किया। मैं छोटा था। चंचल था। सतीजी ने कहा 'अाज समाज एवं संघ आपका अभिनन्दन करना चाहता है।' मैंने कहा-'नहीं, हमें जल्दी जाना है।' उस समय सतीजी म. ने मीठा उलाहना दिया। विवश होकर रुकना पड़ा । इस ग्रन्थ की प्रधान सम्पादिका साध्वी श्री सुप्रभा कमारीजी म. 'सधा' भी वैरागिन थीं, जिनका नाम उस समय सन्दरजी था। मुझे याद है मेरे हाथ सुन्दरजी ने मेहन्दी से मांड़े थे । श्री 'अर्चना' जी म. सा. को जैसा मैंने देखा, समझा, पाया वैसा ही लिख रहा हूँ । सतीजी म० के जीवन में संघर्ष के बादल छा गए ! तूफान आए । पर विशेषता यह वह दीपशिखा नहीं जो तूफान से बुझ जाये । सतीजी म. के दिल में संवर्षों का सामना करने की क्षमता है । आपका मानना है कि संघष से ही जीवन में निखार आता है।
बाधाओं में मुस्कराकर चलना ये इनके जीवन की मुख्य विशेषता है । इसी बीच अनेक संघर्ष-तूफान-उतार-चढाव आए। जो हमारे सिर पर गुरुवर का साया था वह भी उठ गया । जोवन का यह दीप तूफान से घिर गया किन्तु साधना को प्रोट ने इसे बुझने नहीं दिया । सतीजी म० का चिंतन अत्यधिक स्पष्ट है कि कुन्दन को जितना अग्नि में तपायेंगे उतना ही उसमें तेज निखार पायेगा । जब मैने सतीजी म. से दिल खोलकर अनेक प्रसंगों पर चर्चा की तब मुझे उन्होंने अपने जीवन के प्रिय-अप्रिय, मीठ व कडवे अनुभव सुनाये, जिन्हें सुनकर हृदय कांपने लगा,
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