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________________ संघर्ष के तूफान में एक जलती दीप शिखा / ५१ रोंगटे खड़े हो गए । वास्तव में सारे अनुभव दिल को दहलाने वाले थे । श्रापकी गाथा सुनने के बाद मैं इस निर्णय पर पहुँचा कि जिन्दगी में सुख कम और दुःख ज्यादा हैं । वार्ता के दौरान मैंने सतीजी म० से पूछा- इतने संघर्ष, तूफान, कष्ट, CTET को झेलने की ताकत प्राप में कहाँ से आई, किनके जीवन से आपने यह शिक्षा सीखी........? सतीजी म० ने कहा मेरे पूज्य पिताजी जिन्होंने दीक्षा ली थी, उनका जीवन मेरे लिए एक प्रेरणा की धारा बनी । मेरे पिताजी बड़े ही सरल प्रकृति के थे । उन्होंने ही ये सब सिखाया । वे समय-समय पर मुझे कहते ही रहते 'बेटी ! विघ्नों से घबराना नहीं । आगे रखा पैर पीछे हटाना नहीं, ये वीरों का काम है । जो प्रतिपल - हर क्षण घबराता नहीं वो ही मंजिल तक पहुँच पाता है ।' ये सब पूज्य पिताजी की मेहरबानी का सुफल है । जब कभी ऐसी परिस्थिति मेरे सामने आती है तो सहज हो पूज्य पिताजी का स्मरण हो आता | सेवा, तपस्या ही उनके जीवन का प्रमुख अंग था । मैंने बिलकुल करीब से देखा सतीजी म० विद्या, विनय, विवेक की मंगल मूर्ति हैं। वह जिस नये क्षेत्र में जाती हैं वहाँ सबसे पहले यही खोज करती हैं कि इस नगर में कोई साधक है ? किस विषय की साधना करते हैं ? मैंने अचानक सतीजी म० से पूछ लिया इनको आप याद क्यों करती हैं ? इनसे आपको क्या मिलता है ? सतीजी म० ने कहा 'मुनिजी' संसार में अनेक व्यक्ति हैं, अनेक गुण हैं, अपने को हमेशा गुण की तरफ देखना चाहिए | साधना का क्षेत्र होने के नाते साधकों से नई-नई जानकारियाँ मिलती हैं । ऐसे साधक मिल जायें जब उनसे चर्चा करती हूँ तब मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है । देखो मुनिजी ! मैंने अनेक परिस्थितियों का सामना किया लेकिन कभी भी हताश नहीं हुई, मैंने यही विचार किया कि यह दिन भी नहीं रहेंगे। जब तक हवा नहीं चलेगी तब तक बादल सूर्य को घेरे रहेंगे, जैसे ही हवा चलेगी बस बादल हट जायेंगे, आशा व विश्वास का सूर्य चमकने लगेगा | संघर्ष का काम है आना और अपना काम है उन सब का डटकर मुकाबला करना । ये जीवन एक लम्बी यात्रा पर चल रहा है । रुकना नहीं थमना नहीं, चलते चलोये भी विश्वास रखो कि आज नहीं तो कल सफलता निश्चित चरण चूमेगी । निराशा, अविश्वास, कमजोरी, हतोत्साहता ये भी अपने श्राप दूर हो जायेंगे पर हमें एक बात का ध्यान रखना है कि हमारा संबल मजबूत हो। हमारी भावना सुन्दर हो तो मेरा विश्वास है कि जीवन के खुले आकाश में नयी उम्मीदों के फूल अवश्य खिलेंगे । जीवन का उद्यान सद्गुणों के फूलों से महक उठेगा । सतीजी म० का जीवन भिन्न-भिन्न रंगों के खिले हुए फूलों के समान है । प्रत्येक मनुष्य के लिए आपका जीवन सुरम्य गुलदस्ता है । चलते-चलते मैंने प्रश्न किया - मानव को अपने जीवन का भव्यभवन बनाने के लिए क्या करना चाहिए। सतीजी म० ने बड़ी तन्मयता के साथ घड़ी की तरफ देखा, हंसकर कहा अभी समय है सुन्दर बात पूछी । देखिये हमारे जीवन का मूल मंत्र है विश्वास । मनुष्य अपने जीवन का मकान बनाना चाहता है तो सबसे पहले मनुष्य को अपनी श्रद्धा की नींव सुदृढ़ बनानी होगी । मनुष्य के हृदय भवन की नींव श्रद्धा ही है । यह मजबूत होगी तो जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only ainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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