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मानवजीवन रूपी राजमहल में जब-जब मिथ्यात्व का कोहरा छा जाता है तब-तब किसी पथप्रदर्शक के व्यक्तित्व का दिनकर ही उसे दूर करता है।
परम उपकारमयी, गौरवमण्डिता मेरे जीवन की सन्निर्मात्री परमपूज्या गुरुणीजी
0 आर्या सुप्रभा कुमारी 'सुधा'
चारों ओर घना अन्धकार फैला हो, कहीं कुछ दिखाई न देता हो, ऐसे में कोई नन्हा-सा दीप जल उठे, वह अपने उजाले के बल पर सहज ही दूर तक फैले अन्धेरे को दूर कर देता है । जहाँ कुछ नहीं दिखाई देता है वहाँ धीरे-धीरे सभी आकार स्पष्ट होने लगते हैं। दूर तक फैला रेगिस्तान हो, तपन ही तपन हो, इतने में आकाश में बादल छा जाएँ और वर्षा की बूंदें आकाश से उतर कर तपती रेत को शीतल करने लगें, तब देखते ही देखते चारों ओर शीतलता का साम्राज्य छा जाता है। कहीं भयावह जंगल हो, रास्ता दिखाई न देता हो, ऐसे में एक पगडंडी दिखाई दे जाय, तब रास्ता स्वतः ही दिखाई देने लगता है। इसी प्रकार अध्यात्म के बिना यह संसार अन्धकार है, रेगिस्तान और भयावह जंगल की तरह है। संख्यातीत प्राणी प्रतिक्षण इस धरती पर जन्म लेते हैं। झाड़-झंखाड़ की तरह बड़े होते हैं और मृत्यु की गहरी खाई में खो जाते हैं। ऐसे में कोई महान् आत्मा जन्म लेती है जो दीपक बनकर अज्ञानता के अन्धकार को दूर कर देती है, संतापों के रेगिस्तान की तपन को दूर कर देती है और अपने पदचिह्नों के द्वारा जंगल में एक सहज पगडण्डी भी तैयार कर देती है।
अध्यात्म-जगत् की परम साधिका पूज्य गुरुवर्या महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' का जन्म अध्यात्म-जगत् की एक ऐतिहासिक घटना है । आपका जन्म विक्रम सम्वत १९७९ भाद्रपद सप्तमी मंगलवार को किशनगढ़ के समीप दादिया ग्राम में हुआ था। जन्म के समय ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आप एक ज्योति हैं, जिसका उजाला दादिया गांव से लेकर सुदूर काश्मीर तक विकीर्ण होगा। आपने अभी ठीक से आँखें भी नहीं खोली थी, वात्सल्यमयी जननी आपका नामकरण भी नहीं कर पाई थी कि वह इस संसार से प्रयाण कर गयी। तब आप सिर्फ सात दिन की ही थी। यद्यपि प्रापको पिताजी, बड़े पिताजी, बड़े भ्राताजी का
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