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श्रमणीरत्न | २९
पाये हैं और अब इस मालवप्रदेश की धर्म-पिपासु व जिज्ञासु जनता को उनके मुखारविन्द से वीतरागवाणी को सुनने का अवसर मिला है। मालव की धर्मपिपासु जनता का यह सौभाग्य है कि उन्हें ऐसी विद्वद्वर्या एवं विदुषी महासती के दर्शन-प्रवचन का अनमोल किन्तु सहज ही लाभ मिल गया है ।
सच. इस प्रकार सभी संत-सतियाँ केवल वीतराग-वाणी-प्रसार की भावना को लेकर चल पड़ें तो सारे भारतवर्ष में महावीर-वाणी व्याप्त हो जाये फिर चहुँ ओर शान्ति और सुख का साम्राज्य हो जायेगा।
इस प्रकार पूज्य गुरुदेव श्री ने श्रमण-श्रमणी के महिमामय जीवन को बताते हुए महासती श्रीअर्चनाजी म. सा. के बारे में दो शब्द कहे थे जो उन्हीं के भावनामय शब्दों में प्रस्तुत किये हैं। मैं उनके सूखद और दीर्घजीवन की मंगल कामना करता हूँ।
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