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________________ जय परम्परा के पांच पुष्प / २३ सामने आयी। परन्तु आप सदा अपने साधनापथ पर अडिग रहे, विचलित नहीं हुए। वे समस्याओं को दुःख का, पतन का कारण नहीं मानते बल्कि जीवनविकास का कारण मानते थे। अतः शांत भाव से उन्हें सुलझाते रहते । स्थविरवास कुछ वर्षों में आपकी शारीरिक शक्ति काफी क्षीण हो गयी, फिर भी आप विहार करते रहे । जब तक पैरों में चलने की शक्ति रही तब तक अपने परम श्रद्धय गुरुदेव के साथ विचरण करते रहे । जब पैर चलते-२ लड़खड़ाने लगे तब पू. गुरुदेव की आज्ञा से आपका स्थविरवास कुन्दनभवन ब्यावर में हो गया। मुनि श्री भानुऋषिजी म. सा. आपकी सेवा में रहे । दयालु हृदय आप लगभग अठारह वर्ष आठ महीने श्रमणसाधना में संलग्न रहे । इस साधनाकाल में आपके जीवन में अनेक घटनायें घटित हुई । परन्तु आप सदा शांत भाव से सहते रहे । आपमें अपने कष्टों एवं दुःखों को सहने की हिम्मत थी, परन्तु वे दूसरों का दुःख नहीं देख सकते थे । आपके अर्न्तमन में दया एवं करुणा का सागर लहरा रहा था। स्वर्गवास के एक वर्ष पहले की बात है-आप एक दिन शौच के लिये पधारे, वहाँ घास की कमी के कारण दुर्बल एवं भूखी गायों को देखकर आपका हृदय रो उठा और आँखों से अश्रुधारा बह निकली। उसी दिन से दूध का त्याग कर दिया। वे पर-वेदना को सहने में बहुत कमजोर थे । सादा-जीवन आपका जीवन सादा और सरल था। आप यथासंभव अल्प से अल्प मूल्य के वस्त्र ग्रहण करते और वह भी मर्यादा से कम ही रखते थे। सर्दियों के दिनों में आप टाट प्रोढ़कर रात बिता देते, आपकी आवश्यकतायें भी बहुत सीमित थीं। समाधि-मरण आप तीन-२ घंटे की निद्रा लेते थे। रात का शेष समय ध्यान एवं जप में व्यतीत करते । इसी कारण उन्हें अपना भविष्य भी स्पष्ट दिखाई देने लगा । आपने अपने महाप्रयाण के छः माह पूर्व ही अपने देह-त्याग के सम्बन्ध में बता दिया था। अपने स्वर्ग गमन के तीन दिन पूर्व भी आपने इस प्रकार का संकेत दे दिया था। आप अपनी आत्मा में सजग थे। अत: आत्म-अालोचना करके शुद्धि की और क्षमापना की । स्वर्गवास के दिन करीब एक बजे तक अपने भक्तों के घर जाकर उन्हें दर्शन देते रहे। सबसे शुद्ध हृदय से क्षमत-क्षमापना करके आप उस स्थानक में पधारे जहाँ महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. विराज रहे थे। सतीजी ने जब उनसे कहा कि आपके घुटनों में दर्द है फिर आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया। तब आपने शांत स्वर में कहा कि जीवन में दर्द तो चलता ही रहता है जब तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www dnelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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