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________________ जय परम्परा के पाँच पुरुष / २१ त्याग कर दिये । अतः सात वर्ष तक बिना नमक मिर्च के उर्द की दाल और जौं की रूखी रोटी ही लेते थे । अपूर्व साहस । एक बार अपनी छः वर्षीय पुत्री को लेकर अपने ससुराल जाने वाले थे । अतः रात को जल्दी उठकर चल पड़े। अपनी पुत्री को गोद में उठाये वे तेजी से कदम उठा रहे थे। पहाड़ी रास्ता था और पगडण्डी के रास्ते से चल रहे थे। दुर्भाग्यवश रास्ता भूल गये और घने जंगल में भटक गये फिर भी वे साहस करके बढ़ रहे थे कि एक झाड़ी में से शेर निकल प्राये । शेरों को देखते ही उन्होंने अपनी पुत्री को घास के गट्ठर की तरह जमीन पर एक ओर फेंक दिया और म्यान में से तलवार निकाल कर शेरों पर टूट पड़े। काफी समय तक शेरों के साथ संघर्ष होता रहा । अन्त उन्होंने शेरों पर विजय प्राप्त की। लेकिन आपका शरीर भी काफी क्षत-विक्षत हो गया । फिर भी उसकी परवाह किये बिना अपने अपनी पुत्री को उठाया और रास्ता खोजते हुए आगे बढ़ गये । भाग्यवश सही रास्ता मिल गया और सूर्योदय से एक दो घंटे पहिले ही अपने गंतव्य पर पहुँच गये । अभी तक घर का द्वार नहीं खुला था अतः खुलवाया । उनके घावों से खून बह रहा था और वे बुरी तरह से थक चुके थे । इसलिए वे न तो ठीक तरह से खड़े ही रह सके और न ही किसी से बात ही कर पाये । एकदम चारपाई पर गिर पड़े। उनकी यह दशा देखकर घर वाले घबरा गये । आपकी पुत्री ने सारी घटना कह सुनाई। उन्होंने आपको नसीराबाद के अस्पताल में दाखिल करवाया। वहाँ कई महीने उपचार होता रहा। और डॉक्टरों के सत्प्रयत्नों से पूर्णरूपेण स्वस्थ हो गये । स्नेह और प्रतिज्ञा अपनी पुत्री का विवाह आपने खूब आपको सबके साथ भोजन करना पड़ा। हार्दिक स्नेह भरे ग्रह को टाल नहीं सके मनुष्य को विवश कर देता है । । निर्भयता धूमधाम से किया । उसी अवसर पर क्योंकि अपने समधी एवं संबंधियों के वस्तुतः हार्दिक स्नेह और सच्चा प्यार एक बार आप अपने निकट संबंधी के विवाह में सम्मिलित होने जा रहे थे । आपकी दूसरी पुत्री उमा भी आपके साथ थी । सब बैलगाड़ी से जा रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ती थी । उसे पार करते समय बैलों के पैर उखड़ गये । गाड़ीवान भी उन्हें नहीं सम्भाल पाया। इस संकट के समय भी वे घबराये नहीं । डरना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था । वे साहस के साथ गाड़ी से कूद पड़े और बैलों की रस्सी पकड़ कर गाड़ी को नदी से पार कर दिया । परन्तु यह क्या ? एक सफेद रंग का सर्प उनके पैरों से चिपटा हुआ था । सर्प पर दृष्टि पड़ते ही आपकी पुत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.inelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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