SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education Unternational द्वितीय खण्ड / २० ऊँट पर काबू पाया। इस प्रकार आपको धर्म पर अटूट श्रद्धा निष्ठा थी । समय परिवर्तनशील है । वह सदा सर्वदा एकसा नहीं रहता । परिस्थितियों में परिवर्तन प्लेग के समय बहुत सो पूंजी जन सेवा में खर्च हो गई थी । घर का जेवर एवं जमीन आदि भी बेच दिया गया था । इससे उनकी भाभीजी नाराज रहती थीं तथा अपनी देवरानी ( महासती श्री उमरावकुंवरजी की माताजी) पर ताने एवं व्यंग्य कसती रहती थी। आपकी पत्नी शांत स्वभाव की भद्र नारी थीं । सब कुछ सहन कर लेती । वह अपने पति के उग्र स्वभाव से परिचित थी अतः उन्होंने इस बात का कभी भी जिक्र नहीं किया । परन्तु एक दिन पड़ोसिन ने सारी घटना कह सुनाई । यह सुनते ही आप आवेश में आ गये और अपनी पत्नी को लेकर घर से चल पड़े । घर से कोई भी वस्तु साथ नहीं ली और किसी तरह अहमदाबाद पहुँच गये । वहाँ एक परिचित छींपा- कपड़े छापने वाला मिल गया । उससे चार आने उधार लिए और दाल - सेव का खोमचा लगा कर काम शुरू किया। उसके बाद एक अस्पताल में कम्पाउण्डर का काम करने लगे । दिन में अस्पताल का काम करते । शाम को दाल - सेव बेचते और रात को एक स्थान पर पहरा देते । इस तरह रात दिन कठोर परिश्रम करके उन्होंने एक साल में ग्यारह हजार रुपये कमाये । परन्तु दुर्भाग्य ने अभी भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। एक दिन पहरा देते समय सावधानी के कारण वे खान में गिर पड़े और अपने हाथ की नंगी तलवार से उनके पैर में घाव पड़ गया। उन्हें अस्पताल में दाखिल कर दिया गया । उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी अतः उन्हें किशनगढ़ भेज दिया और दस बारह दिन बाद एक कन्या - रत्न का जन्म हुआ । कन्या के जन्म के सात दिन के बाद ही माता का देहान्त हो गया । वही कन्या आज सम्पूर्ण भारत में अध्यात्मयोगिनी, काश्मीर-धर्मप्रचारिका परम विदुषी महासती श्री उमरावकुंवर "अर्चना " के नाम से प्रख्यात है । अभी तक श्री माँगीलालजी के अपने एवं भाइयों के तेईस पुत्रों के वियोग सू सूख ही नहीं पाये थे कि उन पर यह वज्रपात हो गया उस समय चार व्यक्ति उन्हें अहमदाबाद के अस्पताल से लेकर घर पर आये, वहाँ पर आते ही देखा तो घर का ताला टूटा हुआ था और रात-दिन खून-पसीना एक करके जो पैसा कमाया था वह सब चोर ले गये थे । उनके पास कुछ भी नहीं बचा था । खैर एक व्यक्ति से पचास रु. उधार लेकर वे किशनगढ़ पहुँचे, तब तक उनकी धर्मपत्नी का अन्तिम संस्कार हो चुका था । I संतोषी जीवन धर्मपत्नी के देहान्त के बाद परिजनों ने उन्हें दूसरा विवाह करने के लिए बहुत जोर दिया परन्तु वे अपने पुनर्विवाह के पक्ष में नहीं थे, वे अपना जीवन शांति एवं स्वतन्त्रतापूर्वक बिताना चाहते थे । अतः उन्होंने दूसरा विवाह करने से इन्कार कर दिया। साथ में दूध, दही, घी, तेल, मिष्ठान्न, नमक और सब्जी आदि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy