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________________ जयपरम्परा के पांच पुष्प / १५ मिश्रीमलजी 'मधुकर' को युवाचार्य घोषित किया। यह घोषणा आचार्य जी ने श्रावण शुक्ला प्रतिपदा वि. सं. २०३६, दि. २५ जुलाई १९७९ को हैदराबाद में की थी। उस समय मुनिश्री मिश्रीमल जी म. सा. 'मधुकर' चातुर्मासार्थ जोधपुर में विराजमान थे। बाद में फिर एक समारोह में विशाल जन-मेदनी के बीच जोधपुर में आपको यवाचार्य की चादर प्रोढाई गई थी। तभी से आप युवाचार्यश्री के नाम से अभिहित किये जाने लगे थे । युवाचार्य पद पर आसीन होने के पश्चात् आपने संगठन की ओर भी अपनी सेवायें दीं । वर्ष १९८३ ई. का आपका चातुर्मास नासिक में प्राचार्य श्री आनन्दऋषिजी के साथ हुआ। चातुर्मास सानंद संपन्न हुआ और अचान कदि. २६-११-१९८३ को यह जाज्वल्यमान नक्षत्र हमसे बिछुड़ गया । जयगच्छ में ही नहीं सम्पूर्ण श्रमण संघ में आपके स्वर्गवास से एक सन्नाटा छा गया। एक बड़ी रिक्तता आ गई, जिसकी पूर्ति आज तक नहीं हो पाई है । आप एक उच्चकोटि के प्रवचनकार, उपन्यासकार, कथाकार एवं सम्पादकव्याख्याकार थे । आपके प्रकाशित साहित्य की नामावली इस प्रकार हैप्रवचन, संग्रह १. अन्तर की ओर, भाग १ व २ २. साधना के सूत्र ३. पर्युषणपर्व प्रवचन ४. अनेकांतदर्शन ५. जैन-कर्मसिद्धांत ६. जैन-तत्त्वदर्शन ७. जैन संस्कृति : एक विश्लेषण ८. गृहस्थधर्म ९. अपरिग्रह दर्शन १०. अहिंसा दर्शन ११. तप : एक विश्लेषण १२. आध्यात्मिक विकास की भूमिका : गुणस्थान : एक विवेचन कथा साहित्य जैन कथामाला, भाग १ से ५१ उपन्यास १. पिंजरे का पंछी २. अहिंसा की विजय ३. तलाश ४. छाया Jain Education International For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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