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________________ Jain Educatiternational द्वितीय खण्ड / १४ सर्वांगीण अनुशीलन भी किया । इस प्रकार लगभग ३० वर्ष की आयु में मुनि श्री मिश्रीमलजी म. स्थानकवासी जैन समाज के एक विद्वान् श्रमण के रूप में प्रतिष्ठित हुए । आचार्य पद : प्राप्ति एवं त्याग प्राचार्य श्री कानमल जी म. सा. का स्वर्गवास वि. सं. १९८५ में हो गया । उनके स्वर्गवास के पश्चात् जयगच्छ की सम्पूर्ण व्यवस्था स्वामी श्री जोरावरमल जी म. सा. देखते रहे । उनके स्वर्गवास के बाद यह व्यवस्था स्वामी श्री हजारीमल जी म. ने सम्हाली । वि. सं. १९८९ में पाली में छह सम्प्रदायों का एक मुनिसम्मेलन हुआ । सम्प्रदाय की सुव्यवस्था के लिए स्वामी श्री हजारीमलजी म. प्रवर्तक और मुनिश्री चौथमलजी म. को मंत्री का दायित्व सौंपा गया । 1 इधर मुनि श्री मिश्रीमल जी म एक योग्य विद्वान् आगमज्ञ के रूप में समाज के सामने आये तो सम्पूर्ण समाज ने उन्हें आचार्यपद ग्रहण करने के लिए विवश कर दिया । वे स्वभावत: निस्पृह, लोक-संग्रह से दूर एकांत-प्रेमी एवं शांतिप्रिय थे । प्राचार्य पद ग्रहण करना उनके स्वभाव के प्रतिकूल बात थी फिर भी भारी दबाव को देखते हुए आपने प्राचार्य पद स्वीकार किया और वि. सं. २००४ में नागौर में समारोह पूर्वक आपको जयगच्छ के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया और अब आप आचार्य जसवंतमल हो गए। प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हो जाने के बाद आप अपने अन्तर्मन में एक बेचैनी अनुभव करने लगे। मन में उथलपुथल भी मचने लगी तो आप आचार्य पद त्याग करने का विचार करने लगे । इसी बीच श्रमण संघ की एकता व संगठन के प्रयास होने लगे । वि. सं. २००९ में सादड़ी में श्रमण संघ का अभूतपूर्व संगठन हुआ । संगठन की इस एकता के अवसर पर आपने आचार्य पद का त्याग कर महान् प्रादर्श प्रस्तुत किया । आचार्य पद से मुक्त होने के पश्चात् श्रापका अध्ययन, लेखन अबाध गति से चल निकला । वि. सं. २०१८ में गुरुभ्राता स्वामी श्री हजारीमलजी म. सा का स्वर्गवास हो जाने से गच्छ की जिम्मेदारियां पुनः प्राप पर आ गईं । अपने गुरुभ्राता की स्मृति में आपने " मुनिश्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ " का प्रकाशन करवाया जो एक अनुपम एवं संग्रहणीय ग्रन्थ है । फिर मुनिश्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन नामक संस्था की स्थापना की जो श्राज उत्तरोतर उन्नति की ओर अग्रसर है । वि. सं. २०३६ में अपने गुरुदेव (स्व.) श्री जोरावरमलजी म.सा. की स्मृति में प्रागम- बत्तीसी के अनुवाद सहित प्रकाशन की घोषणा की । आज अधिकांश आगम ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं । एक दो बचे हैं, उनके प्रकाशन के साथ ही प्रापकी यह घोषणा पूर्ण हो जावेगी । आपके मार्गदर्शन में प्रकाशित इन आगमों का विद्वत् जगत में अच्छा स्वागत हुआ है । जो पदों से दूर भागता है, पद उसका पीछा नहीं छोड़ते । श्रमण संघ बनने के पश्चात् श्रमण संघ के द्वितीय आचार्य श्री आनंदऋषिजी म. सा. ने मुनिश्री For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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