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जयपरम्परा के पांच पुष्प / ११ की घटनाओं में देखने को मिलता है। आप एक उच्च कोटि के साहित्यकार भी थे।
वि. सं. २०१८ का वर्षावास आपने कुचेरा में सम्पन्न किया था। चातुर्मास की समाप्ति के पश्चात् नागौर के श्री संघ ने आगामी (वि. सं. २०१९ के) चातुर्मास के लिए अपनी भावभीनी विनती की। आपने फरमाया-"सुख-समाधे काया ने साथ दिया तो आगामी चातुर्मास नागौर में करने के भाव हैं।" ___ इस घोषणा में छिपे अनिश्चय को उस समय किसी ने नहीं समझा । पर आप स्वयं जैसे अपने अन्तिम समय को अनुभव करने लग गए थे। चैत्रमास में आप, स्वामी श्री ब्रजलाल जी म. एवं श्री मधुकर मुनिजी म. तीनों ही चांदावतों का नोखा पधारे । कुछ अस्वस्थता के बाद आपको अनुभूति हो गई थी-अब यह माटी की देह माटी में मिलने वाली है। आपने पंचमहाव्रतों का आरोपण किया, अंत:करण को शुद्ध, शांत, प्रसन्न व निर्मल-भावों में भावित करते हुए चैत्र कृष्णा दशमी वि. सं. २०१८ की रात्रि में समाधिपूर्वक देह-त्याग किया।
समता, सत्य-निष्ठा, सहिष्णुता का एक जीवन्त प्रतीक इस धरा से उठ गया ।
वर्तमान में आपके शिष्यों में तपस्वी श्री मोहनलाल जी म. सा. जैन धर्म की अच्छी प्रभावना कर रहे हैं। ३. समतायोगी उपप्रवर्तक स्वामी श्री ब्रजलालजी म.
जन्मतिथि-वि. सं. १९५८ माघ शुक्ला पंचमी (वसंत पंचमी) जन्मस्थान-तिवरी (राजस्थान) पालनपोषण-गढ़ाई पंढरिया (म. प्र.) माता-श्रीमती चम्पाबाई (बाद में श्रमणी दीक्षा) पिता-श्री अमोलकचन्दजी श्रीश्रीमाल दीक्षातिथि–वैशाख शुक्ला त्रयोदशी वि. सं. १९७१ दीक्षागुरु-स्वामी श्री जोरावरमल जी म. सा. दीक्षास्थान-ब्यावर (राजस्थान) स्वर्गवास-आषाढ़ कृष्णा अष्टमी वि. सं. २०४०, दिनांक २ जुलाई १९८३, धुलिया (महाराष्ट्र)
विशिष्टता-निष्काम सेवाभावना, वृद्ध, रुग्ण, असहाय की सेवा के लिए तन-मन से सर्वात्मना समर्पित रहे हैं, नाम व यश की भावना से सर्वथा दूर, सरलतापूर्वक साधना के पथ पर अडिगता से डटना, हस्तलिपि की अद्भुत कला, जैनागमों का सुन्दर शुद्धलिपि में विशिष्ट हस्तलेखन,
ठोस अनुभव की धरती पर पल्लवित ज्योतिषविद्या का गहन अध्ययन । स्वाध्याय के विशिष्ट अभ्यासी, मधुर स्वर, निश्छल व्यवहार, मधुर गायन । पूज्य स्वामीजी श्री हजारीमल
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