SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खण्ड / १२ जी महाराज के स्वर्गवास के पश्चात् श्री मधुकर मुनिजी की साहित्य-साधना में आप अनन्यतम सहयोगी व प्रेरक रहे। आपका पिता तुल्य वात्सल्य, सही संतुलित निर्णय और साथी जैसा सम्पूर्ण सहयोग युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी महाराज के लिए सदा स्पृहणीय एवं समादरणीय रहा । ४. यवाचार्य श्री मिश्रीमल जी म. 'मधुकर' जिस संत को लोगों की असीम श्रद्धा-भक्ति प्राप्त हो और वह उससे बिल्कुल ही निस्पृह तथा सीधा-सरल भावयुक्त रहे तो यह एक ऐसी बात होगी कि गुलाब का फूल तो है, सुगन्ध और सौन्दर्य भी है, मगर उसमें कांटा नहीं है । । विद्या के साथ विनय, अधिकार के साथ विवेक, प्रतिष्ठा और लोकश्रद्धा के साथ सरलता आदि ऐसी अद्भुत बातें हैं जो किसी बिरले में ही पायी जाती हैं। मुनि श्री मिश्रीमलजी म. में ये विरल विशेषताएँ देखकर मन श्रद्धा और आश्चर्य से पुलक-पुलक हो जाता है । उनके जीवन में गहरे पैठकर देखने पर भी कहीं कटुता, विषमता, छल-छिद्र, अहंकार आदि के काँटे नहीं मिलेंगे । वे बहुत ही सरल (पर, चतुर) बहुत ही विनम्र (पर, स्वाभिमानी), बहुत ही मधुर (पर, निश्छल) और अनुशासित (पर, कोमल हृदय) श्रमण थे। ___गौरवपूर्ण भव्य तेजस्वी ललाट, चमकदार बड़ी आँखें, मुख पर स्मित की खिलती आभा और स्नेह तथा सौजन्य वर्षाती कोमल वाणी, प्रथम परिचय में ही अपना अमिट प्रभाव डाल देती थी। उनसे बातचीत करते तो वे ध्यानपूर्वक, मंदस्मित के साथ सुनते रहते थे। फिर नपे-तुले शब्दों में ऐसा सटीक उत्तर देते कि प्रश्नकर्ता निरुत्तर नहीं, संतुष्ट हो जाता । प्रात्मा से प्रात्मा का स्पर्श होने जैसी अनुभूति उनके कुछ ही क्षणों के सहवास में होने लगती थी। उनके जीवन में आध्यात्मिक तेज निखरा हुया था, पर वह तेज सूर्य-सा प्रचंड न होकर चन्द्र-सा शीतल था। मुनिश्री विनम्र तो इतने थे कि बातचीत में यह अनुभव नहीं होता कि वे किसी उच्चपद के अधिकारी थे। गुरुजनों के प्रति वही अगाध श्रद्धा भरे वचन, श्रावकों के प्रति स्नेहसिक्त आदरपूर्ण कोमलवाणी । बुद्धि में अनाग्रह के साथ आस्था के दृढ़ स्वर थे । विक्रम संवत् १९७० मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी, दिनांक १२ दिसम्बर १९१६ को जोधपुर के निकटवर्ती नगर तिवरी में एक शिशु का जन्म हुआ था। माता-पिता ने जिसका नाम रखा 'मिश्रीमल'। बालक मिश्रीमल के पिता का नाम श्री जमनालालजी धाड़ीवाल (कोठारी) और माता का नाम श्रीमती तुलसीबाई था। श्री जमनालालजी सरल स्वभाव के थे, पर तुलसीबाई बड़ी चतुर, धर्मपरायण थीं और महिला-समाज में अच्छा प्रभाव रखती थीं। Jain International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy