________________
वंदों मन बहुभाव
डाड़मचन्द भावसार
महासती श्री अर्चना, वंदों मन बहुभाव । भक्तवृन्द अर्चे जिन्हें, होय मुक्ति-पद चाव ।।१।। भाद्रमास मंगल-दिवस, सर्वलोक-हितकार । महनीया उमरावजी, लीन्हो जग अवतार ।।।।२ निरख अथिर संसार को, गृह कुटुम्ब सब छोड़। भागवती दीक्षा गही, जीवन का नव मोड़ ॥३॥ मरुधर हरियाना हरित, पंचसरित हिमदेश । गिरिभव भू कश्मीर में, फैलाया संदेश ॥४॥ सत्य अहिंसा ध्यान युत, सेवा करुणा-पूर । संयम - उद्दीपन - करण, मोह-कामना - दूर ॥५॥ दीक्षा स्वर्ण-जयन्ति का, जन-जन हर्ष-विभोर । मुदमय मंगलमय महा, सुख छाया चहुँ ओर ॥६॥ वन्दन अभिवन्दन करें, जीएँ वर्ष हजार । महासती का धवल यश, फैले अपरंपार ॥॥७
00
वंदना
शांता धर्मावत महासती श्री उमरावकुंवरजी 'अर्चना' के पावन चरणों में
हमारी बार-बार वन्दना । जिनके चरण-कमल वन्दन से मिटती है
जन-जन की क्रन्दना ॥१॥ संयम-पथ पर चलते चलते
बीत गए हैं वर्ष पचास । दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ती पर, सबके मन में
इसलिए छाया है उल्लास ।।२।। इस शुभावसर पर हम सबको,
___सादर देते हैं आज बधाई । करते सदैव यही शुभ इच्छा
करें सभी जन पुण्यकमाई ॥३॥
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
५८ अर्चनार्चन
Lain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org