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________________ किया निरंतर उत्थान चन्द्रकला पोरवाल, एम. ए. अग्निपथ-गामिनी, सफल हुई साधना में । सच्ची लगन से जुट गईं ईश्वर की आराधना में । सागर समान गंभीर, धरती सम धैर्यवान । गगन-सी विस्तृत, रवि-सा तेज, शीतल हो शशि समान ।। अध्यात्मयोगिनी भगवती, परम विदुषी कल्याणी । महासती महान् विभूति, मितभाषी हो वरदानी ।। उमा, अर्चना, उमरावकुंवर जी, तीनों नाम सुखदाई। तीनों ताप मिटे नाम से, ये नाम सदा वरदाई ।। भूले भटके मानव को, मानवता का पाठ पढ़ाया। पतितों को पावन बनाकर, गौरव के गिरि पर चढ़ाया ।। असंभव को संभव बनाया, दुर्गम पथ पर चल कर। काश्मीर यात्रा करके दिखा दी, अपने प्रात्मबल पर ।। भूख प्यास की नहीं की चिन्ता, सहन करली सर्दी और वर्षा । अहिंसा का प्रचार करके मन महासती जी का हर्षा ।। अल्प समय में उजड़ा सुहाग, विधि का यही विधान था। लिखा भाग्य में वैराग्य त्याग, समय और सम्मान था । सदाचारिणी, ब्रह्मचारिणी श्री उमा ने, दोनों कुल को तारा। धन्य-धन्य जीवन इनका, झुकता है जग सारा ।। दानवीय प्रकृति वाले, जो मानव थे मांसाहारी । अपनी सुधा-रस वाणी से, उन्हें बनाया शाकाहारी ।। दल-बल सहित बढ़ते रहे, किया निरन्तर प्रस्थान । पतन पथ पर चलने वाले का किया निरन्तर उत्थान ।। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड/५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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