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________________ भावोद्गार 0 भीमसेन शर्मा श्री महासतीजी को मेरा नमस्कार है। आपकी वाणी में भरा चमत्कार है।। मधुर वाणी आपकी, अमृत पिला दिया, हर्ष के आलोक से हृदय-कमल खिला दिया। उजड़े हुए उद्यान को हरा बना दिया, खोटे की खोट दूर कर खरा बना दिया । हजारों को बनाया शुचि निर्विकार है। श्री महासतीजी को मेरा नमस्कार है। आपकी वाणी में भरा चमत्कार है ।। थल थल में सुप्रवाहित की ज्ञान-सुरसरी, सिंचित हो जीवन-वाटिका बनी हरीभरी । बजाया आपने अहिंसा धर्म का डंका, हिंसा के दानवों की अब जल गई लंका ।। श्रोतृजन में भर दिए पवित्र संस्कार हैं। श्री महासतीजी को मेरा नमस्कार है। आपकी वाणी में भरा चमत्कार है ।। ज्योति जला ज्ञान की सत्पथ बता दिया, मंजिल तक पहुँचने का विधिक्रम जता दिया। भटक गया था भीमसेन भाग्य खुल गया, उमरावकुंवरजी से मुझे सन्मार्ग मिल गया ।। चारों दिशाएँ बोल रही जय जयकार हैं। श्री महासतीजी को मेरा नमस्कार है। प्रापकी वाणी में भरा चमत्कार है। भगवती उमरावजी साध्वियों में शिरोमणि, मणियों में श्रेष्ठ होती है ज्यों पारसमणि । लोहे को स्वर्ण में बदला, अरु शूल फूल में । संचय किया श्रुत-पुंज का जीवन-दुकूल में ।। वन्दनीया पूजनीया कोटि बार है। श्री महासतीजी को मेरा नमस्कार है। आपकी वाणी में भरा चमत्कार है ।। आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की अर्चनार्चन /५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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