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________________ अभिनंदन हैं, नत वंदन है !! फतेलाल संघवी, जावरा अभिनन्दन है, नत वंदन है, यह सहज सुवासित चंदन है । शिव, सुन्दर, सत्य स्पंदन है, तप, शील, क्षमा अभिष्यन्दन है || १॥ जहाँ कहीं है अविरल क्रंदन, समता साधन ही आलम्बन । सत् चित् ध्यानी पूजा अर्चन, स्वतः प्रकाशित अभिनव सर्जन || २ || अर्हत् सिद्धशरण चित्रंजन, धर्मसरित् ही भवदुःखभंजन | प्रशस्त उत्तम शुभ यह नन्दन, मिथ्यामय भव-मोह निकंदन ||३|| महासती अनुपम कल्याणी, उमराव 'अर्चना' है जगजानी । संयम, त्याग, तितिक्षा सानी, वाचन - रसमय श्रमृत-वाणी ||४|| सहस्रायुर्मय जीवन की सत्कामना D श्री महेन्द्रकुमार 'पाठक' महासती उमरावजी, ध्यान-योग- निष्णात । वाणी मृत स्रोत है, पाठक शीश झुकात ॥ १ ॥ ग्राम-ग्राम पैदल विचर, धर्मतत्त्व दरसाय | भूले भटके मानवी सत्पथ लें अपनाय ||२|| Jain Education International दीक्षा - अर्धशताब्द बिच किये बहूत्तम काम | जीएँ वर्ष हजार ये, परम यशोमय नाम ||३|| प्रथम खण्ड / ५५ For Private & Personal Use Only आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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