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करुणा-स्रोतस्विनी - मोती काका, खाचरौद
तेरी आँखों के सागर में, करुणा के मोती ढलते हैं। अयि पीड़ा की तू रखवालिन, तेरा हर ढंग निराला है। विपदाओं के चौराहे पर, अपने को खूब संभाला है ।। तेरे सम्मुख जब तूफानों ने, किया प्रदर्शन यौवन का, तूने धीरज का दीप जला, पग-पग पर किया उजाला है। तेरी किरणों के कण-कण का, श्रद्धा-अभिवादन करते हैं । तेरी आँखों के सागर में, करुणा के मोती ढलते हैं ।। तेरी रसना से जिनवाणी के, जब जब शब्द निकलते हैं। तब तब जनमानस के भीतर, श्रद्धा के भाव उमड़ते हैं ।। अध्यात्मयोगिनी ! आगम का, जब विश्लेषण तू करती है। लगता है तेरे अधरों से, अमृत के सत्कण झरते हैं ।। तेरी मधुमिश्रित वाणी से, हम सब रीता घट भरते हैं । तेरी आँखों के सागर में, करुणा के मोती ढलते हैं।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन | ५२
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