________________
दीन दुःखों का दर्द बटा, उर का अनुराग लुटाती हो। व्याकुल नैनों को धीर बंधा, हर आँसू को पी जाती हो । जब तेरी दृष्टि ने देखा, बेबस गिरते इंसानों को। पालंबन का संबल देकर, धीरे से उन्हें उठाती हो ।। तेरी पलकों से दया-भाव के, निर्मल झरने झरते हैं । तेरी आँखों के सागर में, करुणा के मोती ढलते हैं ।।
काव्य-सुमन 0 कुलदीपप्रकाश जैन
महासती उमरावकुंवरजी जन्म दादिया पाया, मातृपितृकुल धन्य हुआ, जन-जन का मन सरसाया । संयम-पथ की बनी साधिका, रोम-रोम हरषाया, स्वयं हलाहल पीते रहकर मधु अमृत बरसाया ।। दीक्षा स्वर्णजयन्ती पर हम करते हैं अभिवन्दन, जिनकी वाणी से सिंचित है धर्मकल्पतरु नन्दन । दिव्य ज्योतिकिरणों से दीपित भामंडल है जिनका, धार्मिक जन सभक्ति संपादित अभिनन्दन है उनका ।।
00
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड / ५३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary org