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________________ करुणा की मूर्ति प्राप, करें नवकार जाप, ___ अदम्य उत्साह दृढ मनोबल आया है। कश्मीर प्रचारिका है, मालवज्योति कहाई, ___ अध्यात्मयोगिनी हो, योग विकसाया है ।। जागती ये जोत जले, करें सदा काम भले, __जैन जगत दुलारी, महावीर पंथ है। सरलता समभाव, मेटे छल-बल-दाव, ___ दया-धर्म अवतार, सती गुणवन्त है। युवाचार्य "मधुकर", अन्तेवासिनी "अर्चना" जीयें कोटि-कोटि वर्ष, प्रार्थना यह भव्य है । दो हजार चवालिस, दीक्षा-स्वर्णजयंती को, अर्पित करता “पारदर्शी" काव्य अभिनव्य है ।। 00 अवोद्गार 7 शिरोमणिचन्द्र जैन दुखभंजन भव-भय-हरण, सती उमराव मान । चरण-कमल में भक्तियुत, बारंबार प्रणाम ।। आठ पहर चौसठ घड़ी, करू सती का ध्यान । भाग्य बड़े जो ये मिले, साचे संत सुजान ।। सति-दर्शन पाकर सदा, मन निर्मल हो जात । हँसरूप बन नामके, मोती चुग-चुग खात ।। ज्ञानराशि-राजित सती, ध्यान-साधना-लग्न । आत्ममहोदधि मध्य नित, रहती सदा निमग्न ।। 00 आई घडी आभनंदन की चाण कमल के बदन की प्रथम खण्ड | ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainenbrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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