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पारदर्शी-काव्यांजलि - आशुकविरत्न छंदराज 'पारदर्शी'
मनहर कवित्त भारत में राजस्थानी, धरती है बलिदानी,
आन-बान-शान न्यारी, मानता संसार है। दिये कई हैं विद्वान्, संत-सती ज्ञानवान्,
त्याग-तप-शौर्य की तो, गाथाएं अपार हैं। संत-सतियाँ हमारे, जैन-शासन दुलारे,
ज्ञान का सुदान दिया, मेटे अंधकार हैं। उमरावकुंवरजी, "अर्चना" के चरणों में
___ “पारदर्शी' काव्यांजलि, अर्पित साभार है। किशनगढ़ के पास, गाँव "दादिया" है खास,
यहीं लिया जन्म सती, "अर्चना" कहाई है। संवत् उन्नीसौ साल, उन्नासी का भाद्रमास,
सप्तमी मगंलवार, शुभ घड़ी आई है । पिता "मांगीलाल" माता "अनूपादेवी" दुलारी,
"उमरावकुंवरजी',, महासती पाई है। पूत पग पालने दिखे हैं सारा जग जाने,
_ “पारदर्शी" ज्ञानियों ने बात समझाई है। संवत् उन्नीसौ साल, चौराणु में दीक्षा धार,
अगहन मास वदी, ग्यारस सुहाई है । गुरु पाई महासती, “सरदारकंवरजी"
रविवार "नोखा" गाँव, दीक्षा दिलवाई है। ज्ञान लिया ध्यान किया, तन को तपाय लिया,
प्रवचन-शिरोमणि, साधिका कहाई है । "पारदर्शी" हिन्दी, उर्दू, प्राकृत व गुजराती,
पंजाबी, अंग्रेजी सीखी, ज्ञान-ज्योति पाई है। गाँव-गाँव घर-घर, पैदल ही घूमकर
ज्ञान का ही दान दिया, विद्वेष मिटाया है। राजस्थान, हिमाचल, पंजाब, कश्मीर प्रांत,
उत्तर-मध्यप्रदेश, प्रांत दर्श पाया है।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन/ ५०
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