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मौन सिसकती मानवता को वाणी देने वाली महिमामयी महासती के प्रति श्रद्धा-सुमन
अभिनन्दन रात बार करें
. शशिकर 'खटका' राजस्थानी
मानवता आँसू में डूबी पल पल सिसक रही थी, सच्चाई की प्राचीरों से ईंटें खिसक रही थीं, महाज्वाल में सड़कों के संग गलियाँ धधक रही थीं, अंधियारे में दीपक की जब बाती भभक रही थी, महानिराशा की वेला में तब खुशियाँ पड़ीं दिखाई, लेकर नव संदेश वीर का सती अर्चना आई। जग जिनसे आलोकित है, प्रकट आज आभार करें, दीक्षा-स्वर्णजयन्ती पर अभिनन्दन शत बार करें।
आँसू देख दिशात्रों के जब ठहरे पैर तुम्हारे, नैया है मझधार मनुज की कैसे लगे किनारे, अपने अन्तर् में भावों की तुमने ज्योति जलाई, जग वालों के लिए अर्चना आप स्वयं कहलाई। महावीर के पथ को तुमने लघुवय में स्वीकारा, महानगर से झोपड़ियों तक बट गया नेह तुम्हारा । लेकर तुमसे सीख स्वयं सब सात्विक पथ स्वीकार करें,
दीक्षा-स्वर्णजयन्ती पर अभिनन्दन शत बार करें। हे महामूर्ति ! समता का जीवन तेरा एक कहानी है, त्याग और वैराग्य भाव की जलती ज्योति सुहानी है। दिग्भ्रमित हुई मानवता को तुमसे राह मिली है, मरुथल में वाणी की गंगा बनकर सदा चली है। धोरों की धरती तेरे गुणगान सदा ही गाती, तुमको मीठे मोरों की वाणी सुनने ललचाती। काश्मीर की घाटी "शशिकर" आज जय-जयकार करे । दीक्षा-स्वर्णजयन्ती पर अभिनन्दन शत बार करे ।।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वदन की
अर्चनार्चन/४८
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