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महासतीजी म. के नाम का प्रत्येक अक्षर कभी भी क्षर न होने वाले ज्ञान और साधना के इतिहास को अपने आप में समेटे है । कल्याणी से कल्याण की याचना
1 सौ. सीतादेवी शर्मा
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:- उदय हुई हो चिन्मय गगन में,
बुद्धि की रश्मियों सहित भानु के समान । :- मधुर वाणी से किया ज्ञान का प्रसार,
दया करके दिया है उपदेश का दान ।। राग-द्वेष से रहित परम-हंस-जीवन, की है आपने पावन पात्रों की पहचान । वन्दनीया हो पूज्या हो भगवती। कराया है हमें वचनामृत का पान ।। कुकर्मों को किया आपने चूर चूर, कठिन साधना में सफल हुई किया परम गुरु का ध्यान । वर्णन कैसे करू गुण के सागर का, ज्ञान की थाह कैसे पाऊँ जो है गहरा और महान् ।। रग-रग में मानव कल्याण का रंग, दिव्य ज्योति जलाकर किया है प्रकाशमान । जीवन में उच्च विचार भव्य भाव भरे हैं,
कहीं नहीं दिया आपने अवगुण को स्थान ।। सी :
सीधा-सा मार्ग दिखा दो मुझे, दया करके कल्याणी ! तारण-तरण आप हैं, परम पवित्र वरदानी ! दे दो मुझे ज्ञान की भिक्षा, मैं तो लेनदार हूँ, बीस विस्वा सुपात्र हूँ और निर्विकार हैं।
शरीर तो अशक्त है, आत्म-बल दे दो मुझे। ___ शर्मा कहे अयि भगवती! अमर फल दे दो मुझे ।।
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड/४७
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