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व :
पपीहे-सी हूक तुम शक्ति हो सजन की, तुम भक्ति हो, सत्य अहिंसा की।
तुम मूरत हो सत्य अहिंसा की। वन्दनीय वरप्रदायक, विश्व विजयी महान्, तुम भारत का भाल-तिलक हो । तुम हो सिन्धु समान, तुम आबूगढ़ तुम गिरनार, तुम पावागढ़ तुम हरिद्वार, तुम अरिहन्त, तुम नवकार मंत्र, तुम गीता हो कृष्ण कन्हैया की। तुम गंगा हो सत्य अहिंसा की।
तुम मूरत हो सत्य अहिंसा की। तुम रश्मि हो रवि की, तुम लेखिनी हो कवि की, तुम से ही है, शब्द सार, तुम से ही है, जग का उद्धार । तुम भावना हो, सत्य अहिंसा की। तुम साधना हो सत्य अहिंसा की।
तुम मूरत हो सत्य अहिंसा की। सादर प्रणाम, शत शत अभिनन्दन ! तुम अर्चा हो सत्य अहिंसा की। तुम पूजा हो सत्य अहिंसा की। तुम मूरत हो । 00
सा:
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन ( ४६
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