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________________ सत्य-अहिंसा की गंगा । गोविन्द गुरु, एम. ए., खाचरौद उज्ज्वल मन साकार सत्य, तुम मूरत हो सत्य अहिंसा की। म :- मन मस्तिष्क वाणी-विकास, तम निश्चल अविरल अरुण प्रकाश। तुम ज्योति हो सत्य अहिंसा की । तुम मूरत हो सत्य अहिंसा की। रा:- राग, द्वेष, मद, मोह, लोभ को जीत लिया करके प्रतिकार । तुम सत्यम्, शिवम् सुन्दरम्, तुम महावीर का पावन प्यार। तुम सशक्त निर्भय वाणी हो, सत्य अहिंसा की । तुम मूरत हो सत्य अहिंसा की। व :- वर्ण में श्वेत वसन हैं, चरण में नील कमल हैं। चन्दन है स्वेद, कुन्दन हैं केश । विस्तृत है भव्य ललाट, झुक जाते तेरे सम्मुख, चक्रवर्ती सम्राट् ! तुम प्रशस्त पगडंडी हो, सत्य अहिंसा की तुम मूरत हो सत्य अहिंसा की। कु:- कला-प्रखर, कुल-भूषण तुम, सरिता को कलकल लहर हो तुम । कोयल-सी कूक, आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की प्रथम खण्ड | ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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