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________________ आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की Jain Education International मेरा शत शत वंदन हो श्रीमती माया जैन एम. ए. (अर्थशास्त्र, हिन्दी ) सत्यशील की अमर कहानी, चंदन-वन में फैली थी, सुरभि बही, चतुर्दिक् महकी, कर्म-योग से सागर की लहरें ज्योति पुंज के पास पड़ीं । आगम का निर्भर फूटा जब, सरस्वती पुत्र क्या पुत्री भी अविचल नयनों से अवलोकित करती सिद्धान्त - सूत्र की अमर निधि सहज-सुगम सुधोपम वारी मानुष - मन को चीर पड़ी । अनुपम प्रोज और साहसमय ध्यान - ज्ञान की नई कड़ी, समता के श्राचरण हेतु बहती सुर-सरी में उमरावकुंवर श्रमणीवर्या उत्कृष्ट भाव से कूद पड़ी । मुनिवरेन्द्र हजारीमल से, श्रुत-सरिता गतिशीला थी, मधुकर मन के रागी जन मधुकरी क्रिया में लीन हुए । ज्ञान-ध्यान और सूत्र - साधना श्रमणी संघ की सहज रुचि, हर - अंचल की बाला बाला इस प्रांगण की ओर बढ़ी । दीक्षा के पचास वर्ष लिख सकी स्वर्ण - वर्णों में जो उस अमर - साधिका उमरावकुंवर को मेरा नित शत शत वंदन हो । 00 For Private & Personal Use Only अर्चनार्चन / ४४ www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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