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सारहीन नाते मिटते देखे ज्यों दिनकर नित्य ढले, शाश्वत सुख पाने को संयम-पथ पर दृढ़तर चरण चले । ज्ञान, क्रिया, तप, त्याग सभी का अद्भुत संगम हुआ तभी, द्रुततर आत्मोन्नति करने की लगन बढ़ी ना घटी कभी। योग-साधना के बल पर परमात्मा से नाता जोड़ा, उस अपूर्व 'वर' ज्योतिपुंज को मनुज देखते रहे सभी । अर्ध-शतक दीक्षा-जयंती का शुभ अवसर अब आया है, शत-शत अभिनंदन देने को मेरा मन उमगाया है। जिएँ सहस्रों साल निरंतर जिन-शासन को दीप्त करें, फैले प्रतिपल नील-गगन में यश-वितान जो छाया है। महामहिम उन-सी वे ही हैं और न कोई सानी है, महासती उमरावकुंवर की जग ने सुनी कहानी है।
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महिमामयी महासती के महिमा-कण
D खुर्शीद 'अजेय'
उ उर उल्कित, उल्लासित करता उद्बोधन-उच्चार ! म मरुस्थल में मधुवन मुसकाता, बरसे मेघ-मल्हार !! रा राउर रसना रसवन्ती, रसवादी, रसल-रसार ! व वचस्कारिणी, वीतरागिनी! विकसित विमल विचार !! कु कुंदन-सम, कुलवन्ती, कोमल कादम्बिनी-समान ! व वत्सलता ऋजुता मृदुतामय, विनयशील-विद्वान् !! र रत्न-दीपिका, रत्नमंजरी, ऋद्धि-सिद्धि-रविजात !
राउरे आशीर्वाद से लाए, खुर्शीद "अजेय" प्रभात !!
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन/३८
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