________________
अर्चनीय से पहचान पुरानी है
- कमला जैन 'जोजो'
महासती उमरावकुंवर की जग ने सुनी कहानी है । पर मेरी उन 'अर्चनीय' से अति पहचान पुरानी है। संघर्षों से घिरा हुआ था बहुत पूर्व मेरा जीवन, अटका-भटका उलझावों से परिपूरित था मेरा मन । खोजे नहीं मिल रहा था जब कोई मुझे सुदृढ़ संबल, दिव्य-विभूति 'अर्चना' जी ने समझी थी मेरी उलझन । अपने अनुपम गूढ़ ज्ञान से मुझे सहज समझाया था। जीवन और जगत के रंगों का भी भान कराया था। उनका दैवी शक्ति-रूप सान्निध्य मुझे अति भाया था। क्योंकि उन्हीं ने सच्चे जीवन-पथ पर मुझे बढ़ाया था । सीमातीत निष्कपट ममता सौख्य भाव भी सदा दिया, जन्म-जन्म के नाते का बंधन हो ऐसा मान लिया । उस अभिन्न स्थिति में दिन महिने और वर्ष कितने बीते ? हुई न गणना औ हिसाब बस पंख लगाकर समय गया। उनके उपकारों का प्रतिफल कहाँ दिया जा सकता है क्या उनके सौजन्य, स्नेह का मूल्य किया जा सकता है ? कछ पंखडियां गाढ-भक्ति की, मात्र समर्पित करनी हैं। चरणों में श्रद्धापूर्वक यह तुच्छ भेंट ही रखनी है। मानस-पूजा और अर्चना तो अब भी अनजानी है। महासती उमरावकुंवर की जग ने सुनी कहानी है। जन-जन की आस्था पाकर भी, निरभिमान जो रहीं सदा, श्रमण-संघ का अनुपम 'श्रमणी-रत्न' सभी ने उन्हें कहा । दप-दप करता अन्तर-बाहर द्विगुणित ज्योतिर्मय संगम, जिसने देखा औ' जाना विस्मय-विजड़ित-सा वही रहा । सरस्वती ने स्वयं वास कर ज्ञान विभूषित इन्हें किया, आगम-विज्ञ 'स्वयं-सिद्धा' बनने का शुभ वरदान दिया। पवन-वेगवत् आत्म-साधना के पथ पर गतिमान रहीं, प्रतिपल प्रतिभा प्रखर हुई जन-मानस जिनने जीत लिया।
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
अर्चनार्चन | ३६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org