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मालवज्योति, साध्वीरत्न श्रीउमरावकुंवरजी म. सा.
अभिनन्दन-डादशी - एस. जयसिंह छाजेड़ 'रत्नेश' बी. ए. 'जैन सिद्धान्तप्रभाकर'
परम विदुषी सती-शिरोमणि, मालव-ज्योति विख्याता है। अध्यात्म-जगत् की परम साधिका, उमरावकुंवर प्रख्याता है ।।१।। गौरवमय अजमेर क्षेत्र को, लेकर जन्म किया पावन । छाई खुशियाँ जन-जन में ज्यों, हरा भरा आया सावन ।।२।। मांगीलालजी पिता आपके, अनुपादेवी थी माता । जन्म हुआ जब आपश्री का घर-घर मंगल सुखसाता ॥३॥ वाल्यकाल बीता सुख से अति, यौवन की घड़ियाँ पाई। झूठे हैं सब जग के सपने त्याग-भावना लहराई ॥४॥ उन्नीसौ चौरानवें सम्वत्, अगहनवदि ग्यारस रविवार । नोखा में दीक्षा गृहीत कर, छोड़ा यह संसार असार ॥५॥ पूज्य प्रवर्तक हजारिमल की, आज्ञानुगता सरदारकुंवर । उनके कर-कमलों से उत्तम, संयम अपनाया श्रेयस्कर ।।६।। भूले भटके भव-पथिकों को तुमने राह दिखाई है। दया-धर्म और स्नेह-भाव की, मन्दाकिनी बहाई है ॥७।। हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत, इंगलिश-भाषाओं पर है अधिकार । न्याय, व्याकरण, काव्यमाधुरी, ज्ञान भरा है अपरम्पार ।।८।। जिनवाणी का सिंहनाद कर, सोई सृष्टि जगाती हैं। जिनवर प्रतिबोधित शासन में, धर्म-ध्वजा फहराती हैं ।।९।। गुण अनन्त हैं महासती के, कैसे मैं संगान करू ? सागर को गागर में भरने का, मैं क्यों अभिमान करू ॥१०॥ श्रमण-संघ की मुकुटमणि हो, मानवता की ज्योति विनिर्मल । ध्यानयोग की श्रेष्ठ साधिका, मुक्तिमार्ग में अभिरत अविचल ।।११।। सत्य क्षमा की दिव्य मूर्ति हो, यश गाता सारा संसार । "रत्नेश" अतिभक्तिभाव से, करता अभिनन्दन शत वार ।।१२।।
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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड / ३५
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